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हो। क्या घट रहा होता है तुम्हें? तुम एक ही लीक में पड़े होते हो। ऐसा चलता रहेगा जब तक कि तुम ऐसा कुछ न सीख जाओ जो कि तुम्हें निर्विचार कर सकता हो, जो मन को खाली कर सकता हो ।
इसी सब को अपने अंतर्गत लेता है ध्यान। ध्यान एक उपाय है- तुम्हारे अंतस को निर्विचार कर देने का, मन को गिरा देने का सेतु पर से सरकने का, अज्ञात में बढ़ने का और रहस्य में छलांग लगा दे का। इसलिए मैं कहता हूं : हिसाब-किताब मत लगाना, क्योंकि वह मन की चीज है। इसीलिए मैं कहता हूं कि आध्यात्मिक खोज सीढ़ी दर सीडी नहीं होती, आध्यात्मिक खोज है- एक अचानक छलांग वह साहस है, वह कोई हिसाब-किताब नहीं। वह बुद्धि की चीज नहीं, क्योंकि बुद्धि है मन का हिस्सा। वह हृदय की अधिक है।
लेकिन तुम ज्यादा गहरे जाओ, तो तुम ज्यादा अनुभव करोगे कि वह हृदय से भी पार की है वह न तो विचार की है और न ही भाव की है। वह ज्यादा गहरी है, उन दोनों से अधिक समग्र, अधिक अस्तित्वगत। एक बार तुम इस पर कार्य करना शुरू कर देते हो कि अमन को कैसे पाया जाए, केवल तभी धीरे धीरे शांति तुम पर आ उतरेगी। धीरे-धीरे मौन आ उतरेगा, और संगीत सुनाई पड़ने लगेगा – अज्ञात का संगीत अकथित का संगीत। तब हर चीज फिर से व्यवस्था में आ जाती है। ऐसा होना ही है उसे, क्योंकि तुम गिरा देते हो अतीत को जहां कि तुम और तुम बढ़ते हो नए भविष्य में जहां तुम फिर ठहर जाओगे और
अराजकता है मार्ग मन का ठहरे थे और बद्धमूल थे बद्धमूल हो जाओगे।
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लेकिन मध्य में है आदमी आदमी एक होना, एक अस्तित्व नहीं है; आदमी है एक मार्ग आदमी कुछ है नहीं; आदमी है मात्र एक यात्रा, एक रस्सी खिंची है प्रकृति और परम प्रकृति के बीच इसीलिए वह होता है तनावपूर्ण । यदि तुम मनुष्य बने रहते हो, तो तुम रहोगे तनावपूर्ण या तो तुम्हें गिरना होता है मनुष्य तल के नीचे, या तुम्हें स्वयं को उठाना होता है मनुष्य- अतीत तल तक ।
केवल मनुष्य है अराजकता में जरा प्रकृति की ओर देखना कौवे कांव-कांव करते चिड़िया चहचहाती, और हर चीज संपूर्ण होती है। प्रकृति में कहीं कोई समस्या नहीं। समस्या का अस्तित्व बनता है मनुष्य के मन द्वारा ही, और समस्या विसर्जित हो जाती जब मानव मन विसर्जित हो जाता है। इसलिए जीवन की समस्याओं को स्वयं मन के द्वारा ही सुलझाने की कोशिश मत करना। ऐसा हो नहीं सकता। वह सब से ज्यादा मूढ़ता की बात होती है जो कि कोई कर सकता है। ठीक से समझ लो कि मन है सेतु - उसे देखना भर है। वह शाश्वत नहीं, वह है अस्थायी ।
वह ऐसा है; जब तुम मकान बदलते हो तो पुराना मकान व्यवस्थित था; हर चीज अपनी जगह पर ठीक बैठी थी। फिर तुम बदल लेते हो मकान, फिर फर्नीचर, फिर कपड़े, फिर और दूसरी चीजें हर चीज जो व्यवस्थित थी अव्यवस्थित हो जाती है, और तुम चले आते हो नए मकान में। हर चीज एक अव्यवस्था हो जाती है। तुम्हें उसे फिर से जमाना होता है। जब तुम बदल रहे होते हो मकान, तुमने