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सवितर्क समाधि वह समाधि है जहां योगी अभी भी वह भेद करने के योग्य नहीं रहता है जो सच्चे ज्ञान के और शब्दों पर आधारित ज्ञान और तर्क या इंद्रिय-बोध पर आधारित ज्ञान के बीच होता है जो सब मिश्रित अवस्था में मन में बना रहता है।
निर्वितर्क समाधि है केंद्र तक पहुंच जाना : तर्क तिरोहित हो जाता है, शास्त्र अब अर्थपूर्ण नहीं रहते, इंद्रिय-संवेदनाएं धोखा नहीं दे सकतीं तुम्हें। जब तुम होते हो केंद्र पर, तो अचानक हर चीज स्वतःसिद्ध सत्य हो जाती है। ये शब्द ठीक से समझ लेने हैं-'स्वतःसिद्ध सत्य। 'सत्य होते हैं वहां परिधि पर, लेकिन वे स्वत: प्रमाणित हरगिज नहीं होते। किसी प्रमाण की जरूरत होती है, किसी तर्कणा की जरूरत होती है। यदि तुम कहते हो कुछ तो तुम्हें प्रमाणित करना होता है उसे। यदि परिधि पर कहते हो, 'परमात्मा है', तो तुम्हें उसे प्रमाणित करना होगा, स्वयं के सामने, दूसरों के सामने। केंद्र पर परमात्मा है, स्वत: प्रमाणित, तुम्हें जरूरत नहीं रहती किसी प्रमाण की। कौन-से प्रमाण की जरूरत होती है, जब तुम्हारी आंखें खुली होती हैं और तुम देख सकते हो सूरज को उगते हए। लेकिन उस आदमी के लिए जो कि अंधा होता है प्रमाण की जरूरत होती है। क्या प्रमाण की जरूरत होती है, जब तुम प्रेम में होते हो? तुम्हें पता होता है कि वह है; वह स्वत: स्पष्ट है। दूसरे तो मांग कर सकते हैं प्रमाण की। कैसे तुम उन्हें दे सकते हो कोई प्रमाण?
केंद्र पर पहुंचा व्यक्ति स्वयं ही प्रमाण बन जाता है; वह देता नहीं है कोई प्रमाण। जो कुछ वह जानता है वह स्वत: प्रमाणित होता है। ऐसा ही है। वह किसी बौदधिक निर्णय के रूप में नहीं पहुंचा है ? उस तक। वह कोई शास्त्रीय-सूत्र नहीं होता; वह किसी निष्कर्ष के रूप में नहीं आया है, वह बस वैसा है ही। उसने जान लिया है। इसलिए उपनिषदों में कहीं कोई प्रमाण नहीं है। पतंजलि के यहां कोई प्रमाण नहीं है। पतंजलि तो मात्र व्याख्या कर देते हैं, लेकिन कोई प्रमाण नहीं देते। यही है भेद : जब कोई जानता है तो वह वर्णन ही करता है; जब कोई नहीं जानता है, तो पहले वह प्रमाणित करता है कि यह ऐसा-ऐसा है। जिन्होंने जाना है वे मात्र वर्णन कर देते हैं उस अज्ञात का। वे कोई प्रमाण नहीं देते।
पश्चिम में, ईसाई संतों ने परमात्मा के प्रमाण दिए हैं। पूरब में, हम हंसते हैं इस पर, क्योंकि यह बेतुकी बात है। परमात्मा को प्रमाणित करता हुआ आदमी बेतुका है। कैसे तुम प्रमाणित कर सकते हो उसे? और जब तुम प्रमाणित करते हो परमात्मा जैसे किसी रूप को तो तम उसे झठा प्रमाणित करने को ही निमंत्रित कर लेते हो लोगों को। और इन्हीं ईसाई संतों के कारण ही जो कि परमात्मा को प्रमाणित करने की कोशिश करते हैं, सारा पश्चिम, धीरे-धीरे, परमात्मा विरोधी हो गया है, क्योंकि लोग सदा ही कर सकते हैं खंडन। तर्क एक दो-धारी तलवार होती है : यह काटती है दोनों ओर से। यदि तुम प्रमाणित करते हो कोई चीज, तो वह झूठी प्रमाणित भी हो सकती है। तर्क प्रस्तुत किया जा सकता उसके विरुद्ध।