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मात्र एक बहाना बन जाता है सचेतपूर्ण होने के भीतरी प्रशिक्षण का। कार्य का स्थान दूसरा हो जाता है और कार्य द्वारा आयी जागरूकता प्राथमिक बात हो जाती है।
जब रात को तुम सारी क्रिया गिरा देते हो और तुम सोने लगते हो, तो वह जागरूकता जारी रहती है चाहे तुम सोये भी रही। जागरूकता एक साक्षी बन जाती है. ही, शरीर नींद में डूबता चला जाता है। धीरे-धीरे शरीर आराम में उतरता चला जाता है। ऐसा नहीं है. कि तुम भीतर ऐसा शब्दों में बोलते हो; तुम तो बस देखते हो. धीरे-धीरे, विचार तिरोहित हो रहे होते हैं। तुम अंतरालों को देखते होधीरे-धीरे संसार बहुत दूर होता जाता है। तुम उतर रहे होते हो अपने भीतरी तलघरे में, अचेतन में। यदि तुम जागरूकता सहित नींद में उतर सकते हो, केवल तभी रात्रि में भीतर होश की निरंतरता बनी रहेगी। यही अर्थ है पतंजलि का जब वे कहते हैं कि 'उस बोध पर ध्यान करो जो निद्रा दवारा चला आता है।'
और निद्रा बहुत ज्ञान दे सेंकती है, क्योंकि वहां तुम्हारी अंतस-संपत्ति का भंडार है, बहुत से जन्मों का भंडार। तुम बहुत चीजें वहां संचित किये रहते हो।
सबसे पहले जागरूक होने का प्रयास करना जबकि तुम जागे हुए होते हो, जब तुम जाग्रत अवस्था में होते हो। जब, वह जागरूकता स्वयं ही इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता कि तुम कौन-सा कार्य कर रहे हो-वस्तुत चलना या सपने में चलना इनमें कोई भेद नहीं रहता। जब पहली बार तुम सोते हो जागरूकता सहित, तुम देखोगे कि गियर्स किस प्रकार बदलते हैं। जब सजगता तिरोहित होने लगती है, तुम्हें एक बदलाहट (क्लिक) का भी अनुभव होगा; चेतन मन जा चुका है और एक दूसरा ही क्षेत्र प्रारंभ हो रहा है। अंतससत्ता के गियर्स परिवर्तित हो गये हैं। इन दोनों गियर्स के बीच एक छोटा-सा अंतराल होता है, एक निष्क्रिय गियर का। जब कभी गियर परिवर्तित होता है, उसे बीच के निष्किय मार्ग में से गजरना पड़ता है। धीरे - धीरे तम केवल गियर्स के परिवर्तन के प्रति ही जाग्रत नहीं होओगे बल्कि दोनों के बीच के अंतराल के प्रति जाग्रत हो जाओगे। उस अंतराल के बीच तुम प्रथम झलक पाओगे अतिचेतन की।
जब चेतन मन अचेतन में परिवर्तित होता है, तो क्षण के बहुत सूक्ष्म भाग भर को ही तुम देख पाओगे अतिचेतन को। लेकिन वह तो बाद का अध्याय है कथा में। केवल प्रसंगवश ही मैंने इसका उल्लेख किया। पहले तो तुम अचेतन का बोध पाओगे। वह बात तुम्हारे जीवन में एक जबरदस्त। परिवर्तन ले आयेगी।
जब तुम अपने सपनों को देखना शुरू कर देते हो तो तुम पाओगे पांच प्रकार के स्वप्न। पहले प्रकार का स्वप्न तो मात्र कूड़ा करकट होता है। हजारों मनोविश्लेषक बस उसी कूड़े पर कार्य कर रहे हैं, यह बिलकुल व्यर्थ है। ऐसा होता है क्योंकि सारे दिन में, दिन भर काम करते हुए तुम बहुत कूड़ा-कचरा इकट्ठा कर लेते हो। बिलकुल ऐसे ही जैसे शरीर पर आ जमती है धूल और तुम्हें जरूरत होती है