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ग्र यदि तुम लड़ना शुरू कर देते हो लहरों के साथ तो तुम हार जाओगे लड़ना मदद न देगा। तुम्हें स्वीकार करना होगा लहरों को वस्तुतः यदि तुम लहरों को स्वीकार कर सको और तुम्हारी नाव को, चाहे कितनी ही छोटी हो, उनके साथ बढ़ने दो और उनके विरुद्ध नहीं, तो कोई खतरा नहीं ।
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तिलोपा के 'निर्मुक्त और स्वाभाविक' का अर्थ यही है। लहरें होती हैं वहां; तुम बस आने देते हो उन्हें। तुम तो बस बढ़ने देते हो स्वयं को उनके साथ, उनके विरुद्ध नहीं। तुम उन्हीं का हिस्सा बन जाते हो। तब बहुत बड़ी प्रसन्नता घटती है यही है सर्फिंग की सारी कला लहरों के साथ बढ़ना; उनके विरुद्ध नहीं; इतना अधिक बहना-बढ़ना उनके साथ-साथ कि तुम उनसे अलग नहीं रहते सर्फिंग' एक बड़ा ध्यान बन सकती है। यह तुम्हें अंतरतम की झलक दे सकती है क्योंकि यह कोई संघर्ष नहीं, यह होने देना है, एक प्रवाह है। तुम यह भी जान जाते हो कि लहरों पर भी आनंदित हुआ जा सकता है - जब तुम सारी घटना को केंद्र से देखते हो।
यह तो ऐसे होता है जैसे तुम कोई यात्री हो और बादल घिर आए हों, बहुत बिजली कड़क रही हो, और तुम भूल गए हो कि तुम कहाँ जा रहे हो; तुम भूल चुके हो मार्ग और तुम्हें घर जाने की जल्दी हो । यही घट रहा है सतह पर एक खोया हुआ यात्री, बहुत सारे बादल घिरे होते है, बिजली कड़कती हुई । जल्दी ही भयंकर बारिश होने लगेगी। तुम घर खोज रहे हो, घर की सुरक्षा खोज रहे हो। फिर अचानक तुम पहुंच जाते हो घर। अब तुम बैठे हो घर के भीतर, अब तुम प्रतीक्षा करते उससे आनंदित हो सकते हो। अब बिजली चमकने का अपना सौंदर्य होता है में खो गए थे तो वह ऐसा नहीं था लेकिन अब घर के भीतर बैठे हुए सारी जाती है। अब बारिश पड़ती है और तुम आनंद मनाते हो। अब बिजली चमक रही होती है और तुम आनंदित होते हो उससे बादलों में बड़ी गर्जन होती है और तुम उसका उत्सव मनाते हो, क्योंकि अब भीतर तुम सुरक्षित हो ।
हो बारिश की, अब तुम जब तुम बाहर थे, जंगल घटना बड़ी सौंदर्यपूर्ण हो
एक बार जब तुम केंद्र तक पहुंच जाते हो, तो जो कुछ भी घटता है सतह पर उससे आनंदित ही होते हो। सारी बात यह होती है कि सतह पर संघर्ष नहीं करना है बल्कि उल्टे केंद्र में सरक आना है। तब वहां नियंत्रण हो जाता है, और वह नियंत्रण जो आरोपित नहीं हुआ होता, वह नियंत्रण जो सहज रूप से घटता है जब तुम केंद्र में होते हो।
चेतना में केंद्रित हो जाना ही मन का नियंत्रण है। इसीलिए मत कोशिश करना मन पर नियंत्रण करने की। भाषा तुम्हें भटका सकती है। कोई नहीं कर सकता नियंत्रण, और जो कोशिश करते हैं नियंत्रण करने की, वे पागल हो जाएंगे। वे तो एकदम पागल ही हो जाएंगे। क्योंकि मन पर नियंत्रण करने की कोशिश और कुछ नहीं हैं सिवाय कि मन का एक हिस्सा मन के दूसरे हिस्से को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा होता है।
तुम होते कौन हो जो नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे होते हो? तुम भी लहर हो, निस्संदेह