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इसलिए मत करना सजग रहने का कोई प्रयास, जबकि तुम्हें नींद आ रही हो तो। तुम बिगाड़ लोगे अपनी नींद और तुम न पाओगे जागरूकता। तुम इसका अभ्यास करना केवल दिन में। जब दिन में तुम अधिकाधिक सजग हो जाते हो, तो सजगता की वही तरंग ही, अपनी स्वयं की ऊर्जा दवारा, वह आती है निद्रा में। तुम सो जाते हो फिर भी तुम अनुभव करते हो अपने भीतर एक केंद्र, जो देख रहा है। एक प्रकाश, प्रारंभ में एक छोटा-सा प्रकाश ही, प्रदीप्त हो रहा होता है भीतर, और तुम देख सकते हो। पर प्रारंभ मत करना इसे ही। तुम ऐसा करना जबकि जाग रहे होते हो, और ऐसा घटेगा जब तुम नींद में होते हो।
'बहत लोगों को कई बार अनुभव होता है कि आप उनके सपनों में आते हैं तो क्या सोचें ऐसे सपनों के बारे में
वे एक जैसे नहीं होते। यह तुम पर निर्भर है। कई बार यह होता होगा मात्र पहले प्रकार का स्वप्न; जिसे मैं कहता हूं कूड़ा-करकट, क्योंकि तुम मुझे इतने ध्यानपूर्वक सुनते हो कि एक छाप छूट जाती मन पर। और तुम मुझे सुनते हो निरंतर, प्रतिदिन, तुम करते हो ध्यान, एक छाप मन पर छूट जाती है। वह भारी हो सकती है। कई बार मन को निर्मुक्त करना होता है उसे; वह कूड़ा होता है।
लेकिन स्वप्न दूसरे प्रकार का भी हो सकता है : तुम मुझे ज्यादा नजदीक चाहोगे। और मैंने इतनी सारी बाधाएं निर्मित की हुई हैं, तुम्हें ज्यादा पास नहीं आने दिया जाता है। सुबह तुम देख सकते हो मुझे; वह भी दूर से। शाम को तुम आ सकते हो, और वह भी बहुत कठिनाई से। इसलिए तुम्हें दबाना पड़ता है। वही दमन उत्पन्न कर सकता है दूसरे प्रकार के स्वप्न को। तुम्हें सपना आ सकता है कि मैं आया हूं तुम्हारे पास, या कि तुम आये हो मेरे पास, और बातें कर रहे हो मुझसे।
यह हो सकता है तीसरे प्रकार का : यह अचेतन से आया संप्रेषण हो सकता है। यदि यह होता है तीसरे प्रकार का, तब यह होता है अर्थपूर्ण। यह तुम्हें इतना ही दर्शाता है कि तुम मुझसे भागने का प्रयत्न कर रहे हो। ज्यादा निकट आओ। अचेतन यही कह रहा है, ' भागने की कोशिश मत करो और बाहर-बाहर मत बने रहो; ज्यादा करीब आओ।'
यह हो सकता है चौथे प्रकार का : तुम्हारे पिछले जन्म की कोई बात। क्योंकि तुममें से बहुत मेरे साथ रह चुके हैं; तो यह हो सकता है अतीत का कोई अंश। तुम्हारा मन अतीत पथ पर सरक रहा होता है।
यह पांचवीं प्रकार का भी हो सकता है : भविष्य की कोई संभावना। सारे प्रकार संभव होते हैं। ये हैं पाच प्रकार के स्वप्न। यह हो सकता है दिव्य-दर्शन, जो कि एक प्रकार का स्वप्न ही होता है। मैं