________________
हा, दिव्य-दर्शन वाले सपने होते हैं - इस संसार के नहीं, बल्कि दूसरे संसार के। कई बार तुम्हें
मिलती हैं दिव्य झलकियां और यदि तुम ध्यान करते हो, तो तुम्हें अधिकाधिक घटेंगी ये। कुछ समय के लिए वे बन जाएंगी साधारण घटनाएं। वे ज्यादा ऊंचे सपने हैं। वे चीजों से संबंधित नहीं होते, बल्कि संबंधित होते हैं तुम्हारी अंतर्घटना से। लेकिन फिर भी वे सपने ही होते हैं, इसलिए चिपक मत जाना उनसे। उनके भी पार जाना होता है। यदि तुम बुद्ध को देखते हो तुम्हारे दिव्य-स्वप्न में, तो ध्यान रहे कि यह बुद्ध भी स्वप्न का ही भाग है। निस्संदेह, यह बात सुंदर होती है, आध्यात्मिक होती है, तुम्हारी खोज में बहुत-बहुत सहायक होती है, लेकिन तो भी चिपक मत जाना इससे।
झेन सद्गुरु सदियों से कह रहे हैं कि यदि ध्यान के समय तुम्हें बुद्ध मिल जाएं तो तुरंत मार देना उन्हें। एक क्षण की भी प्रतीक्षा मत करना। यदि तुम नहीं मारते हो उन्हें, तो वे मार देंगे तुम्हें। और वे ठीक कहते हैं।
दिव्य-स्वप्न सुंदर होते हैं, लेकिन यदि तुम उनसे बहुत ज्यादा आनंदित होने लगते हो तो वे खतरनाक हो सकते हैं। तब तुम फिर रुक जाते हो किसी अनुभव के साथ ही। और जब तुम देखते हो बुद्ध को तो यह बात वस्तुत: ही सुंदर होती है। यह वास्तविक की अपेक्षा ज्यादा वास्तविक लगती है,
और बहुत प्रसाद होता है इसमें। दिव्य-दर्शन को देखने मात्र से ही तुम भीतर गहन मौन और गहन शांति अनुभव करते हो। जब तुम कृष्ण को देखते हो उनकी बांसुरी सहित, गीत गाते हुए, तो कौन साथ नहीं बने रहना चाहेगा? साथ रहना ही चाहोगे। फिर-फिर यह दर्शन दोहराया जाए, यही चाहोगे। तब बुद्ध ने ही मार दिया होता है तुम्हें।
जरा खयाल रखना, यही है कसौटी : जो कुछ दिखाई देता है उसे स्वप्न की भांति समझना है; केवल देखने वाला ही वास्तविक होता है। वह सब जो दिखायी देता है, स्वप्न है-अच्छा, बुरा, धार्मिक, अधार्मिक, कामुक, आध्यात्मिक-इससे कुछ भेद नहीं पड़ता। सपनों में कामवासनामयी अश्लील-लीला होती है, और सपनों में ही आध्यात्मिक लीला भी होती है, लेकिन दोनों लीलाएं ही हैं। व्यक्ति को सब कुछ गिरा देना होता है। सभी अनुभव सपना हैं; केवल अनुभवकर्ता है सत्य। तुम्हें उस स्थल तक पहुंचना होता है, जहां कुछ भी नहीं होता देखने को, कुछ नहीं होता सुनने को, कुछ नहीं होता सूंघने को, कुछ नहीं होता छुने को केवल होता है विशाल आकाश और अकेले तुम। केवल द्रष्टा बच रहता है। सारे अतिथि चले जाते हैं, मेहमान जा चुके होते हैं, केवल मेजबान बना रहता है। जब यह क्षण आता है, केवल तभी घटती है वास्तविक घटना। इसके पहले, दूसरा सब कुछ सपना ही है।
दूसरा प्रश्न पूछा गया है : 'निद्रा और स्वप्न में सचेत कैसे रहें?