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यह बात तुम्हारे लिए पीड़ादायक है क्योंकि तुम चिपकने लगते हो। जब तुम बनाते हो एक ढांचा, तो तुम उससे चिपकने लग जाते हो। जिस क्षण मैं देखता हूं कि तुमने सिद्धांत के साथ चिपकना शुरू कर दिया है, तो तुरंत मुझे विपरीत को बीच में लाना पड़ता है उन्हें मिटा देने को।
कई बार तुम बनाओगे घर, और कई बार मैं तोड़ दूंगा उसे। कई बार तुम अनुभव करोगे कि एक सुव्यवस्था घट गई है, और मैं फिर बना दूंगा अव्यवस्था। इसमें अर्थ क्या होगा? अर्थ यह है कि एक दिन तुम जागरूक हो जाओगे, तुम सुनोगे मुझे लेकिन फिर भी तुम कोई सुव्यवस्था न बनाओगे, तुम कोई ढांचा खड़ा न करोगे। क्योंकि सार ही क्या रहा यदि मैं उसे मिटा ही दूंगा अगले दिन? तुम बस सुनोगे मुझे –शब्दों, सिद्धांतों या धर्म – सिद्धांतों से चिपके बगैर ही। जिस दिन तुम सुन सकते हो मुझे तुम्हारे भीतर कोई ढांचा बनाए बिना और मैं देखता हूं कि तुमने मुझे सुना है और वहा शून्यता है, तो मैंने पूरी कर दी बात।
वर्षों तक मुझे सुनना तुम्हें ले आएगा इस बिंदु तक। तुम्हें आना ही पड़ेगा इस तक, नहीं तो अर्थ क्या है? तुम लाने लगते हो एक सुव्यवस्था, एक अनुशासन, जब तक कि वह तैयार होता है, तो मैं आ पहुंचता हूं और मिटा देता हूं उसे।
एक तिब्बती कथा है मारपा के विषय में। उसके गुरु ने उससे घर बनाने को कहा, अकेले ही, बिना किसी की मदद के। गांव से ईंटों और पत्थरों को मठ तक लाना कठिन था। चार या पांच मील की दूरी थी। मारपा ने हर चीज अकेले ही ढोई, ऐसा करना ही था। और बनाना था तिमजला मकान, तिब्बत में उन दिनों जो बड़े से बड़ा बनाया जा सकता था। उसने दिन-रात कड़ी मेहनत की। अकेले ही करनी थी उसे हर चीज। वर्षों बीत गए, घर तैयार हो गया, और मारपा लौट आया खुशी-खुशी। उसने गुरु के चरणों में झुक कर प्रणाम किया और बोला, 'घर तैयार है।' गुरु ने कहा, 'अब आग लगा दो उसमें।' मारपा गया और जला दिया वह घर। सारी रात और सारे अगले दिन घर जलता रहा। सांझ तक कुछ न बचा था। मारपा गया, झुका, प्रणाम किया और बोला, 'जैसा कि आपने आदेश दिया था, घर जला दिया गया है। गुरु ने देखा उसकी तरफ और बोला, 'कल सुबह फिर से शुरू कर दो। एक नया घर बनाना होगा।' और कहा जाता है कि ऐसा सात बार घटित हुआ। मारपा का हो चला, वही बात फिर-फिर करते हुए ही। वह बना देता घर- और वह बहुत ज्यादा कुशल हो गया धीरे – धीरे। वह ज्यादा जल्दी घर बनाने लगा, कम समय में ही। हर बार जब घर तैयार हो जाता, गुरु कह देता, जला दो उसे। जब घर सातवीं बार जल गया, तो गुरु ने कहा, 'अब कोई जरूरत नहीं।'
यह एक कथा है। शायद ऐसा न भी हुआ हो, लेकिन यही तो मैं कर रहा हूं तुम्हारे साथ। जिस क्षण तुम सुनते हो मुझे तो तुम भीतर एक 'घर' बनाना शुरू कर देते हो सिद्धातों का ढांचा, एक सुसंगत जोड़, जीने का एक दर्शन, अनुसरण करने का एक सिद्धांत, एक नक्शा जिस क्षण मैं देखता हूं कि घर तैयार है तो मैं गिराने लगता हूं उसे। और ऐसा मैं करूंगा सात बार, और यदि जरूरत हुई, तो सत्तर बार। मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं उस क्षण की जब तुम सुनोगे और तुम इकट्ठा न करोगे शब्दों को। तुम