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सुनते हो गहन प्रेम में जैसे कि मन जा चुका हो और हृदय सुनता हौ और आनंद से स्पंदित हो-तब अचेतन सुन रहा होता है। तब जो कुछ मैं कहता हूं तुम्हारी जड़ों में बहुत गहरे उतरेगा।
लेकिन एक तीसरी संभावना है कि तुम परम चेतन द्वारा सुन सकते हो। तब प्रेम भी एक बेचैन उत्तेजना होता है-बहुत सूक्ष्म, लेकिन प्रेम भी एक उत्तेजना होता है। तब वहां कुछ नहीं होता, कोई विचार नहीं, कोई मनोभाव नहीं। तुम इस छोर से उस छोर तक खाली हो जाते हो, एक शून्यता बन जाते हो। तब जो कुछ मैं कहता हूं और जो कुछ मैं हूं,वह उसी शून्यता में उतरता है। तब तुम अतिचेतन द्वारा सुन रहे होते हो।
ये होते हैं तीन आयाम। जब तुम जागे होते हो, तो तुम चेतन मन में जीते हो; तुम काम करते हो, तुम सोचते हो, तुम यह-वह करते रहते हो। जब तुम सो जाते हो तो चेतन मन अब नहीं होता कार्य करने को, वह आराम कर रहा होता है। तब दूसरा आयाम क्रियाशील हो जाता है, अचेतन मन का आयाम। तब तुम सोच नहीं सकते, लेकिन तुम सपना देख सकते हो। सारी रात में करीब-करीब आठ आवर्तन होते हैं निरंतर आने वाले सपनों के। केवल कुछ क्षणों के लिए तुम सपना नहीं देख रहे होते, अन्यथा तो तुम सपना ही देख रहे होते हो।
पतंजलि कहते हैं :
उस बोध पर भी ध्यान करो जो निद्रा के समय उतर आता है।
तुम तो बस नींद में ऐसे जा पड़ते हो जैसे कि यह एक प्रकार से अनुपस्थित हो जाना हो। ऐसा नहीं है-इसकी अपनी मौजूदगी होती है। निद्रा जागने का अभाव मात्र ही नहीं है। यदि ऐसा होता, तो ध्यान करने को कुछ होता ही नहीं। निद्रा अहंकार की भांति या प्रकाश की अनुपस्थिति की भाति नहीं है। निद्रा की एक अपनी विधायकता होती है। यह अस्तित्व रखती है और इसका अस्तित्व होता है उतना ही जितना कि तुम्हारे जागने के समय का। जब तुम ध्यान करते हो और निद्रा के रहस्य तुम्हारे सामने उद्घाटित होते हैं, तब तुम देखोगे कि जागने और सोने के बीच कोई भेद नहीं है। दोनों पूर्णतया अस्तित्व रखते हैं। निद्रा जागने के बाद का विश्राम मात्र नहीं है, यह एक अलग प्रकार की क्रिया होती है, इसलिए होते हैं सपने।
सपना एक जबरदस्त क्रिया है-यह अधिक शक्तिशाली है तुम्हारे सोचने की अपेक्षा और अधिक अर्थपूर्ण भी, क्योंकि वे तुम्हारे सोचने-विचारने की अपेक्षा तुम्हारे ज्यादा गहरे अंश से संबंधित होते हैं। जब तुम निद्रा में उतरते हो, तब मन जो दिन भर काम कर रहा था, थका होता है, निढाल होता है। यह मन एक बहुत छोटा हिस्सा होता है, अचेतन की तुलना में दशांश ही। अचेतन नौ गुना ज्यादा