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एक फिक्र। स्त्री पास में हो तो दूसरे के साथ चली ही आती हैं उसकी अपनी समस्याएं। और समस्याएं दुगुनी नहीं होती जब दो व्यक्ति मिलते हैं, वे तो कई गुना बढ़ जाती हैं। पुरुष अकेला नहीं रह सकता क्योंकि वह अकेलापन बना देता है चिंता। पुरुष स्त्री के साथ नहीं रह सकता क्योंकि तब स्त्री बना देती है चिंता। यही बात सत्य है स्त्री के लिए भी। चिंता तुम्हारे जीवन का एक ढंग ही बन जाती है; जो कुछ भी घटता है, चिंता तो बनी रहती है।
पिछले अनुभव, संस्कार दुख निर्मित करते हैं। क्योंकि जब कभी तुम जीते पिछले अनुभव द्वारा, यह बात तुममें एक लकीर खींच देती है। यदि कोई अनुभव बहुत –बहुत बार दोहराया जाता है, तो लकीर ज्यादा और ज्यादा गहरी हो जाती है। तब यदि जीवन विभिन्न अनुभवों, तरीकों से गतिमान हो और ऊर्जा तुम्हारे पिछले अनुभवों की उस लीक में न बह रही हो तो तुम अधूरापन अनुभव करते हो। लेकिन यदि जीवन उसी तरह बना रहता है, और ऊर्जा उसी लीक में से बहती रहती है, तब तुम ऊब अनुभव करते हो, तब तुम्हें चाहिए होती है उत्तेजना। यदि उत्तेजना न हो, तो तुम अनुभव करते हो कि प्रयोजन ही क्या है जीए चले जाने का?
तुम रोज –रोज वही भोजन नहीं खा सकते। मैं खा सकता हूं वही भोजन, मेरी बात छोड़ दो। तुम नहीं खा सकते एक ही प्रकार का भोजन हर रोज। यदि तुम एक ही प्रकार की चीजें खाते हो तो तुम हताश अनुभव करते हो, क्योंकि हर रोज एक ही तरह के भोजन से स्वाद, नवीनता खो जाती है। यदि तुम हर रोज बदलते हो खाने की चीजें, यह बात भी चिंता और मुसीबत खड़ी कर देगी, क्योंकि शरीर भोजन के साथ अनुकूलित हो जाता है। और यदि हर रोज बदलते हो उसे, तो शरीर का रसायन बदल जाता है और शरीर असुविधा अनुभव करता है। शरीर सुविधा अनुभव करता है यदि तुम एक ही तरह का भोजन खाते रहो, लेकिन तब मन नहीं अनुभव करता सुविधापूर्ण।
यदि तुम जीते हो तुम्हारी पिछली आदतों के द्वारा तो शरीर सदा अनुभव करेगा सुविधापूर्ण, क्योंकि शरीर एक यंत्र है, वह नए के लिए उत्सुक नहीं। वह तो बस वही बातें चाहता है। शरीर को चाहिए एक ही दिनचर्या। मन सदा चाहता है परिवर्तन, क्योंकि मन स्वयं ही एक गतिमय घटना है। पल भर के लिए भी मन वही नहीं रहता, वह बदलता ही जाता है।
मैंने सुना है लार्ड बायरन के बारे में कि उसका साथ कई सौ स्त्रियों से रहा। कम से कम साठ स्त्रियों की जानकारी तो पक्की है, प्रमाण मौजूद हैं कि उसने प्रेम किया साठ स्त्रियों से। वह बहुत समय तक नहीं जीया, तो वह जरूर हर तीसरे दिन बदलता रहा होगा स्त्रियां। लेकिन एक स्त्री की पकड़ में वह आ ही गया और उस स्त्री ने उसे मजबूर कर दिया था अपने से विवाह करने को। वह समर्पित नहीं हई जब तक कि उसने विवाह न कर लिया उससे। उसने अपने शरीर को छने नहीं दिया जब तक कि उसने विवाह नहीं कर लिया उससे। वह जानती थी कि उसका प्रेम –संबंध रहा है बहुत –सी स्त्रियों से। और एक बार वह प्रेम कर लेता है किसी स्त्री से, तो बस बिलकुल भूल ही जाता उस स्त्री को - खत्म हो जाती बात। वह मन था एक कल्पनाशील भावुक कवि का, और कवि भी विश्वसनीय नहीं