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चाहोगे वह जीए, और तुम पास में बैठे हुए होते हो । सारी रात तुम बिस्तर के किनारे बैठे रहते और रात ऐसी जान पड़ती जैसे कि वह कोई अनंतकाल हो । उसका बिलकुल कोई अंत दिखाई ही नहीं पड़ता, वह । यही है जीवन के प्रति लिप्सा का अर्थ ज्यादा समय के लिए लिप्सा ।
बढ़ती जाती और आगे, आगे दीवार पर छ. बहुत ज्यादा धीमी चल रहीं जान पड़ती है, दुख में समय धीमे चलता है। जब तुम प्रसन्न होते हो तुम्हारी प्रेमिका के साथ होते हो, तुम्हारे मित्र के साथ तो तुम उस क्षण को संजो रहे होते हों-समय तेज चलता है। सारी रात गुजर जाती है और ऐसा जान पड़ता है कि कुछ मिनट या कुछ पल ही बीते हैं ऐसा क्यों होता है? क्योंकि दीवार पर लगी घड़ी इसकी चिंता नहीं करती कि तुम सुखी हो या दुखी, वह अपने से चलती रहती है वह तुम्हारी भावदशाओं के साथ कभी तेज नहीं चलती। वह सदा एक ही गति से चल रही होती है, लेकिन तुम्हारी व्याख्याएं भेद रखती हैं। दुख में समय ज्यादा बड़ा हो जाता है, सुख में समय ज्यादा छोटा हो जाता है। जब कभी कोई आनंदपूर्ण मनोदशा में होता है तो समय बिलकुल तिरोहित ही हो जाता है।
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ईसाइयत कहती है कि जब तुम नरक में फेंक दिए जाते हो, तो नरक अनंत हो जाता है, अंतहीन | बर्ट्रेड रसल ने एक किताब लिखी है व्हाई आई एम नाट ए क्रिश्चियन में ईसाई क्यों नहीं हूं।' वह हु सारे कारण बताता है। उनमें से एक यह है : 'जो पाप मैंने किए हैं, उससे ऐसा सोचना असंभव है कि अनंत सजा न्यायपूर्ण हो सकती है। मैंने शायद बहुत से पाप किए होंगे। तुम. मुझे नरक में फेंक देते हो पचास वर्ष सौ वर्ष के लिए, पचास जन्म, सौ जन्म, हजार जन्म तक, लेकिन अनंत सजा न्यायपूर्ण नहीं हो सकती है। शाश्वत सजा तो अन्यायपूर्ण ही जान पड़ती है, और ईसाइयत केवल एक जन्म में ही विश्वास रखती है। इतने सारे पाप कोई व्यक्ति एक जन्म में कैसे कर सकता है, मात्र साठ या सत्तर वर्ष के जीवन में जिससे कि वह अनंतकाल तक सजा पाने लायक हो जाए ! यह बात तो एकदम बेतुकी जान पड़ती है। रसल कहते हैं जो कोई पाप मैंने किए हैं और जिन्हें मैं करने की सोच रहा हूं लेकिन जिन्हें अभी तक किया नहीं है – यदि मैं कल्पित, स्वप्नगत पापों को स्वीकार कर लूं फिर भी कठोर से ज्यादा सजा नहीं दे सकता है।'
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अपने सारे पापों को – किए अनकिए, कठोर न्यायाधीश भी मुझे पांच वर्षों से
ईसाई धर्मशास्त्री उत्तर नहीं दे पाए हैं।
क्योंकि वह सबसे बड़ा
और ठीक कहता है वह लेकिन सार की बात चूक जाता है वह नरक शाश्वत है इस कारण नहीं कि वह शाश्वत है, बल्कि इस कारण ऐसा है दुख है – समय सरकता ही नहीं है। ऐसा जान पड़ता है कि वह अंतहीन है। यदि आनंद में समय तिरोहित हो जाता है तो गहनतम दुख में, जो कि नरक है, समय इतना धीमे चलता है जैसे कि बिलकुल चल ही न रहा हो। नरक का एक क्षण भी अनंत होता है तुम्हें ऐसा जान पड़ेगा कि वह समाप्त नहीं हो रहा, समाप्त ही नहीं हो रहा, समाप्त हो ही नहीं रहा ।
अंतहीन नरक का सिद्धात सुंदर है, बहुत मनोवैज्ञानिक है। यह इतना ही दिखाता कि समय मन पर निर्भर करता है, समय एक मनोगत घटना है तुम दुखी होते हो, तो समय का अस्तित्व होता है; तुम