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________________ किताबों में हमें बहुत से रंगीन चित्र बनाने पड़ते हैं, बच्चे शब्दों के साथ बहुत ज्यादा नहीं बढ़ सकते। धीरे-धीरे ही वे बढ़ेंगे। तुम्हें एक बड़ा-सा आम चित्रित करना पड़ता है, और लिखना पड़ता है छोटेछोटे अक्षरों में ' आम '| पहले वे देखेंगे चित्र को, और फिर वे जुड़ जाएंगे शब्द के साथ। धीरे-धीरे, चित्र छोटा और छोटा होता जाएगा और तिरोहित हो जाएगा। तब आम शब्द ही काम देगा। एक अपरिष्कृत मन चित्रों की भाषा में सोचता है जैसा कि बच्चे करते हैं। जब तुम सोए हुए होते हो, तुम आदिम होते हो। सारी सभ्यता तिरोहित हो जाती है, संस्कृति तिरोहित हो जाती है, समाज तिरोहित हो जाता है। अब तुम समकालीन संसार के हिस्से नहीं रहते, तुम आदिम मनुष्य जैसे होते हो एक गुफा में। क्योंकि अचेतन मन अपरिष्कृत रहता है, तुम चित्रों की भाषा में सोचना शुरू कर देते हो। स्वप्न और विचार दोनों एक ही होते हैं। जब स्वप्न थम जाते हैं, तो विचार थम जाते हैं, जब विचार थम जाते हैं, तो स्वप्न थम जाते हैं। पूरब का सारा प्रयास यही रहा है। सारी बात ही किसी तरह गिरा दें। हम इसकी चिंता नहीं करते कि कैसे उसे अनुकूलित करें या कि कैसे उसकी व्याख्या करें, बल्कि यह कि कैसे उसे गिरा दें। और यदि यह गिरायी जा सकती है, तो क्यों चिंता करनी किसी व्याख्या की? क्यों व्यर्थ करना समय? देर-अबेर पश्चिम इसे जान ही लेगा, क्योंकि अब ध्यान की विधियां पश्चिम में फैल रही हैं। ध्यान ढंग है स्वप्नों को, सोचने को, मन की सारी जटिलता को गिरा देने का। और एक बार वे गिर जाती हैं तो तुम मन की स्वस्थता को ही उपलब्ध नहीं होते, तुम किसी ऐसी चीज को उपलब्ध कर लेते हो, बिलकुल अभी तो जिसकी तुम्हारे मन में कोई कल्पना भी नहीं। तुम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते वह किस तरह की अवस्था होगी जब तुम कुछ सोचते ही नहीं, जब तुम स्वप्न नहीं देखते, जब तुम्हारा होना मात्र ही होगा। मनोविश्लेषण या दूसरी प्रचलित प्रणालियां बहुत लंबा समय लेती हैं. पांच वर्ष, तीन वर्ष, बस स्वप्नों की व्याख्या करते हैं। सारी बात इतनी उबाऊ जान पड़ती है, और केवल बहुत थोड़े लोग इसे अपना सकते हैं। और वे भी जो कि इसे क्रियान्वित कर सकते हैं, क्या पाते हैं इससे? बहुत लोग आए हैं मेरे पास जो मनोविश्लेषण से गुजरे हैं; कोई आत्म-ज्ञान घटित नहीं हुआ है। बहुत वर्ष वे मनोविश्लेषण में जीए। न ही केवल उनका मनोविश्लेषण हुआ, उन्होंने बहुत से दूसरे लोगों का भी मनोविश्लेषण किया और कुछ घटित नहीं हुआ; वे वैसे ही हैं, अहंकार वही है। इसके विपरीत, वे कुछ ज्यादा दृढ़ हुए हैं, मजबूत हुए हैं। और अस्तित्वगत चिंताएं बनी रहती हैं। हां, मैं कोई बहुत ज्यादा मूल्य नहीं मानता फ्रायड और जुग का, क्योंकि मेरा दृष्टिकोण है : मन को कैसे गिराना? वह गिराया जा सकता है और उसे गिराने में कम समय लगता है, उसे गिराना कहीं ज्यादा आसान है। वस्तुत: उसे गिराया जा सकता है बिना किसी की मदद के भी।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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