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और फिर आती है अंतिम कीमिया, वह स्थल, जहां तुम अकस्मात जान जाते हो कि तुम न तो प्रसन्नता हो और न ही उदासी। तुम देखने वाले हो, साक्षी हो। तुम देखते शिखरों को, तुम देखते घाटियों को, लेकिन तुम इनमें से कुछ भी नहीं हो।
एक बार यह दृष्टि उपलब्ध हो जाती है तो तुम हर चीज का उत्सव मना सकते हो। तुम उत्सव मनाते हो जीवन का, तम उत्सव मनाते हो मृत्यु का। तम उत्सव मनाते हो प्रसन्नता का और तम उत्सव मनाते हो अप्रसन्नता का। तुम हर चीज का उत्सव मनाते हो। तब तुम किसी ध्रुवता के साथ तादात्म्य नहीं बनाते। दोनों ध्रुवताएं, दोनों छोर साथ-साथ उपलब्ध हो गए हैं तुम्हें और तुम आसानी से एक से दूसरे तक पहुंच सकते हो। तुम हो जाते हो तरल, तुम बहने लगते हो। तब तुम कर सकते हो उपयोग दोनों का, और दोनों ही तुम्हारे विकास में मदद बन सकते हैं।
इसे स्मरण रखना: मत बनाना समस्याएं। स्थिति को समझने की कोशिश करना, जीवन की ध्रुवता को समझने की कोशिश करना। गर्मियों में गर्मी होती है, सर्दियों में सर्दी होती है, तो कहां है कोई समस्या? सर्दियों में आनंदित होना सर्दी से, गर्मियों में आनंदित होना गर्मी से। गर्मियों में आनंद मनाना सूर्य का। रात्रि में आनंद मनाना सितारों का और अंधकार का, दिन में सूर्य का और प्रकाश का। तुम आनंद को बना लेना तुम्हारी निरंतरता। जो कुछ भी घटता है उसके बावजूद तुम आनंद मनाते रहना। तुम प्रयास करना इसका, और अकस्मात हर चीज बदल जाती है और रूपांतरित हो जाती है।
पांचवां प्रश्न:
अभी पिछले दिनों ही आपने कहा कि यदि तुम प्रेम नहीं कर सकते तो ध्यान तुम्हें ले जाएगा प्रेम की ओर और यदि तुम ध्यान नहीं कर सकते तो प्रेम तुम्हें ले जाएगा ध्यान की ओर। जान पड़ता है आपने अपना मन बदल लिया है।
१ पास कोई मन है ही नहीं बदलने को। तुम बदल सकते हो, यदि तुम्हारे पास हो तो, तुम कैसे
बदल सकते हो इसे यदि तुम्हारे पास यह हो ही नहीं?
कभी कोशिश मत करना दो पलों की तुलना करने की, क्योंकि हर पल स्वयं में अतुलनीय होता है। ही, कई दिनों में होता हूं सर्दियों की भांति और कई दिनों में होता हूं गर्मियों की भांति, लेकिन तो भी मैंने नहीं बदला होता मन। मेरे पास कोई मन है नहीं। इसी तरह घटती है यह बात।