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जब यह एकमयता घटती है तब प्रेम रूपांतरित हो जाता है प्रार्थना में। जब यह एकमयता घटती है, तब अकस्मात ही एक धार्मिक गुणवत्ता चली आती है प्रेम में
पहले प्रेम में गुणवत्ता होती है कामवासना की। यदि वह संकीर्ण है, तो वह मात्र कामवासना होगी, वह प्रेम न होगा। यदि प्रेम और ज्यादा गहरा जाता है, तो उसमें गुणवत्ता आ जाएगी आध्यात्मिकता की, दिव्यता की गुणवत्ता। तो प्रेम एक सेतु होता है इस संसार और उस संसार के बीच, सेक्स और समाधि के बीच। इसीलिए मैं कहता चला जाता हूं कि यात्रा सेक्स से लेकर समाधि तक की है। प्रेम तो एक सेतु है। यदि तुम सेतु की ओर नहीं बढ़ते, तो कामवासना ही बन जाएगा तुम्हारा जीवन, तुम्हारा संपूर्ण जीवन बहुत मामूली बहुत असुंदर सेक्स सुंदर हो सकता है, किंतु केवल प्रेम सहित प्रेम के अंश के रूप में अकेले अपने में वह असुंदर होता है। यह बात बिलकुल ऐसी होती है तुम्हारी आंखें सुंदर होती है, लेकिन यदि आंखें उनकी सॉकेट से निकाल ली जाती हैं तो असुंदर बन जाएंगी। सुंदरतम आंखें असुंदर बन जाएंगी यदि उन्हें देह से काट दिया तो ।
ऐसा आ वानगॉग के साथ कोई नहीं प्रेम फिर एक वेश्या ने उसे खुश कर देने को
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करता था उसे, क्योंकि उसका शरीर असुंदर और नाटा था । प्रशंसा करने लायक और कोई चीज उसके शरीर में न पाकर, उसके कान की प्रशंसा कर दी, यह कहते हुए कि उसके पास सुंदरतम कान हैं। प्रेमी कानों की बात कभी नहीं कहते क्योंकि कई और चीजें होती हैं प्रशंसा करने के लिए, लेकिन उसमें कुछ था ही नहीं। शरीर बहुत - बहुत असुंदर था, और इसीलिए उस वेश्या ने कह दिया था, 'तुम्हारे कान बड़े सुंदर है।' वह घर गया। किसी ने भी कभी उसके शरीर की किसी चीज को गुणवान नहीं माना था। किसी ने कभी उसके शरीर को स्वीकार न किया था। ऐसा पहली बार हुआ था, और वह इतना रोमांचित हो गया कि उसने अपना ही कान काट दिया, वापस आया उस वेश्या के पास और कान पेश कर दिया। अब तो वह कान बिलकुल ही असुंदर था।
कामवासना अंश है प्रेम का अधिक बड़ी संपूर्णता का प्रेम उसे सौंदर्य देता है, अन्यथा तो यह सबसे अधिक असुंदर क्रियाओं में से एक है। इसीलिए लोग अंधकार में कामवासना की ओर बढ़ते हैं। वे स्वयं भी इस क्रिया का प्रकाश में संपन्न किया जाना पसंद नहीं करते हैं। तुम देखते हो कि मनुष्य के अतिरिक्त सभी पशु संभोग करते हैं दिन में ही कोई पशु रात में कष्ट नहीं उठाता; रात विश्राम के लिए होती है। सभी पशु दिन में संभोग करते हैं, केवल आदमी संभोग करता है रात्रि में। एक तरह का भय होता है कि संभोग की क्रिया थोड़ी असुंदर है और कोई स्त्री अपनी खुली आंखों सहित कभी संभोग नहीं करती है, क्योंकि उनमें पुरुष की अपेक्षा ज्यादा सुरुचि संवेदना होती है वे हमेशा मुंदी आंखों सहित संभोग करती है, जिससे कि कोई चीज दिखाई नहीं देती। स्त्रियां अश्लील नहीं होती हैं, केवल पुरुष होते हैं ऐसे
इसीलिए स्त्रियों के इतने ज्यादा नग्न चित्र विद्यमान रहते स्त्रियों की रुचि नहीं होती इसमें उनके पास ज्यादा सुरुचि
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हैं। केवल पुरुषों का रस है देह देखने में
संवेदना होती है, क्योंकि देह पशु की है।
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