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________________ और क्यों घ्राण शक्ति खो गयी आदमी से? बहुत सारी जटिल चीजें जुड़ी हैं इस बात से, तो मैं उन्हें भी कह देना चाहूंगा तुम से प्रसंगवश ही, ताकि तुम उन्हें याद रख सको। यदि तुम पार कर जाते हो उन अवरोधों को, तो अचानक तुम्हारी सूंघने की क्षमता वापस लौट आएगी। वह दबाई गई है। तुम्हें पता होना चाहिए कि सूंघना गहरे रूप से संबंधित होता है कामवासना से। कामवासना का दमन बन जाता है सूंघने का दमन। प्रेम करने से पहले जानवर शरीर को सबसे पहले सूंघते हैं। वास्तव में, वे काम-केंद्र को सूंघ लेते हैं इससे पहले कि वे प्रेम करें। यदि काम-केंद्र उन्हें संकेत दे रहा होता है कि 'ही, तुम्हें स्वीकार कर लिया गया, आने दिया गया', केवल तभी वे प्रेम करते हैं अन्यथा नहीं। मानव शरीर भी महक देता है-निमत्रण की, विकर्षण की, आकर्षण की। शरीर की अपनी भाषा होती है और प्रतीक होते हैं। लेकिन समाज में, ऐसा बहुत कठिन हो जाये यदि तुम महक सको तो। यदि तुम बात कर रहे हो मित्र से, और उसकी पत्नी महकना शुरू कर दे जैसे कि तुम्हें निमंत्रण दे रही हो कामवासना के लिए तो क्या करोगे तुम? खतरनाक होगा ऐसा। एकमात्र ढंग जिससे कि सभ्यता सामना कर सकती है इसका, यही है कि महक को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए, क्योंकि यह एक कामवासना से संबंधित घटना है। तुम गुजर रहे होते एक सड़क पर से और एक स्त्री गुजर जार्ता है पास से। हो सकता हैं वह चेतन रूप से तुम्हारी ओर आकर्षित न हो, तो भी वह देती है यह महक, निमंत्रण की महक। क्या करोगे? तुम अपनी पत्नी से संभोग करना चाहते हो। वह तुम्हारी पत्नी है तो निस्संदेह जब तुम संभोग करना चाहते हो, तो उसे करना ही होगा संभोग, लेकिन उसका शरीर तुम्हें संकेत देता है अ-प्रेम का, अनिमंत्रण का, मात्र अरुचि का। क्या करोगे तुम? और शरीर अनियंत्रित होते हैं; तुम उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकते केवल मन के दवारा ही। महक खतरनाक बन गई। वह कामवासनामयी बन गयी, वह होती है कामवासनामयी। इसीलिए सुगंधित द्रव्यों के नाम कामवासना से जुड़े होते हैं। जाओ किसी दुकान पर और देखो जरा सुगंधियों के नामों को-सभी कामवासनामय होते हैं। सुगंधिया काम- भाव युक्त हैं, और नाक पूरी तरह बंद है। क्योंकि इसलाम कामवासना को अलग नहीं करता बल्कि उसे स्वीकारता है, और इसलाम कामवासना को अस्वीकार नहीं करता बल्कि उसे स्वीकार करता है, और इसलाम कामवासना के संसार को त्यागने की बात नहीं करता, इसलिए इसलाम थोड़ी आजादी दे सकता था संघने के बोध को। दुनिया का कोई धर्म ऐसा नहीं कर सका। किंतु सुगंध बहुत, बहुत सुंदर हो सकती है यदि तुम इसे ध्यान का विषय बना लेते हो। यह एक बड़ी सूक्ष्म घटना होती है, और धीरे-धीरे तुम पहुंच सकते हो सूक्ष्मतम तक।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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