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पागल आदमी वह आदमी है जिसके अहंकार ने पूरा आधिपत्य जमा लिया होता है। ठीक इसके विपरीत होती है अवस्था बुद्ध पुरुष की जिसने अहंकार गिरा दिया होता है पूरी तरह तब वह स्वाभाविक होता है। अहंकार के बिना तुम स्वाभाविक होते हो, सागर की ओर बहती नदी की भांति, या कि देवदारों के बीच से गुजरती हवा की भांति या कि आकाश में तैरते बादलों की भांति । अहंकार के बिना तुम फिर से इस विशाल प्रकृति के हिस्से होते हो, निर्मुक्त और स्वाभाविक अहंकार के साथ तनाव मौजूद होता है। अहंकार के साथ तुम अलग होते हो। अहंकार सहित तुमने सारे संबंधों से स्वयं को काट लिया होता है। यदि तुम संबंध में सरकते भी हो, तो तुम ऐसा क्रमिक रूप से करते हो । अहंकार तुम्हें किसी चीज में पूरेपन से नहीं जाने देगा। वह हमेशा रोक रहा होता है स्वयं को।
यदि तुम सोचते हो कि तुम अस्तित्व के केंद्र हो तो तुम पागल हो। यदि तुम सोचते हो कि तुम मात्र एक तरंग हो सागर की, संपूर्ण के भाग हो, संपूर्ण के साथ एक हो, तब तुम कभीनहीं हो सकते पागल । यदि पतंजलि यहां होते, तो वे वही कुछ करते जो मैं कर रहा हूं। और ठीक से याद रख लेना कि स्थितियां भेद रखती हैं, लेकिन आदमी करीब-करीब वही है।
अब टेक्यालॉजी आ पहुंची है। वह मौजूद नहीं थी पतंजलि के दिनों में नए घर हैं, नए साधन हैं। आदमी के आस-पास की हर चीज बदल गयी है, लेकिन आदमी बना हुआ है वैसा ही । पतंजलि के समय में भी, आदमी ऐसा ही था, लगभग ऐसा ही कुछ ज्यादा नहीं बदला है आदमी में। इस बात को ध्यान में रख लेना है। अन्यथा व्यक्ति सोचने लगता है कि आधुनिक आदमी एक ढंग से निंदित है। नहीं, ऐसा हो सकता है कि तुम किसी कार के पीछे पागल होते हो; तुम चाहोगे स्पोर्ट्स कार और तुम होते हो ने बहुत तनावपूर्ण और इसके द्वारा बहुत चिंता निर्मित हो जाती है। निस्संदेह, पतंजलि के समय में कारें ' इत्यादि नहीं थीं, लेकिन लोग बैलगाड़ियों के पीछे पागल हुए जाते थे। यदि अभी तुम किसी भारतीय गाव में चले जाओ, तो जिस व्यक्ति के पास तेज बैलगाड़ी होती है वह सम्मानित होता है। एक तेज बैलगाडी हो या कि रॉल्स रॉयस उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता अहंकार उसी ढंग से परिपूर्ण होता है। विषय-वस्तुओं से कुछ ज्यादा अंतर नहीं पड़ता। आदमी का मन यदि अहंकेंद्रित होता है, तो सदा ढूंढ ही लेगा कुछ न कुछ, इसलिए समस्या किसी चीज की नहीं है।
आधुनिक आदमी आधुनिक नहीं है, केवल दुनिया आधुनिक है। आदमी बना रहता है बहुत प्राचीन, पुराना। तुम सोचते हो तुम आधुनिक हो? जब मैं देखता हूं तुम्हारे चेहरों की ओर, मैं पहचान पुराने चेहरों को तुम यहां रहते रहे हो बहुत-बहुत जन्मों से और तुम बने रहे हो लगभग वैसे ही। तुमने कुछ नहीं सीखा है क्योंकि तुम फिर वही कर रहे हो फिर-फिर वही लकीर पीट रहे हो! चीजें - बदल गई हैं, मगर आदमी बना हुआ है वैसा का वैसा ही; कुछ ज्यादा नहीं बदला है। कुछ ज्यादा बदल नहीं सकता, जब तक कि रूपांतरण के लिए तुम कोई कदम नहीं उठाते हो।