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अकस्मात वे अकेले पड़ जाते। पत्नी नहीं होती है वहां, पति नहीं होता है वहां-वहां बनी होती है एक विशाल दूरी। भाषा के द्वारा वे स्वयं को धोखा दे लेते हैं कि दूरी वहां है ही नहीं।
गहन प्रेम में, लोग मौन रहते हैं। बोलने की कोई जरूरत नहीं होती। परस्पर बिना कछ बोले ही वे समझ जाते हैं। वे एक-दूसरे का हाथ पकड़ सकते हैं और चुपचाप बैठे रह सकते हैं। प्रार्थना भी मौन होती है। लेकिन यदि तुम प्रेम में कभी मौन नहीं रहे, तो कैसे तुम मौन रहोगे प्रार्थना में? वह मौन है तुम्हारे और समष्टि के बीच का।
प्रेम है दो व्यक्तियों के बीच का मौन, प्रार्थना है समष्टि और एक व्यक्ति के बीच का मौन। वह समष्टि, वह अखंड संपूर्णता है परमात्मा। प्रेम एक प्रशिक्षण है, वह एक पाठशाला है। मैं कभी नहीं सुझाऊंगा कि तुम उससे बचो। यदि तुम कतराते हो उससे तो तुम कभी नहीं पहुंचोगे प्रार्थना तक। और जब तुम प्रार्थना करते हो, तुम इतनी ज्यादा बातें करोगे तो भी हृदय संप्रेषण नहीं कर पाएगा, नहीं कर पाएगा कोई संवाद।
तो चाहे कितना ही कठिन हो पाठ, कितना ही मुश्किल हो ठंडेपन को समाप्त करना, प्रेम को टाल जाने की कोशिश मत करना। प्रार्थना प्रेम से किया पलायन नहीं है। मत बना लेना उसे पलायन। बहुतों ने किया है वैसा और विफल हुए हैं। तुम संसार के किसी धर्मस्थान में जा सकते हो और जरा देख सकते हो उन मूढों को जो विफल हुए, असफल हुए, क्योंकि उन्होंने प्रेम से बचने का प्रयत्न किया।
व्यक्ति को प्रेम में से गुजरना ही पड़ता है; अन्यथा तुम क्रोधित रहोगे जीवन भर। कैसे तुम प्रार्थना कर पाओगे, यदि तुम जीवन के प्रति गहरा अस्वीकार ही बनाए रहो? कैसे तुम करोगे स्वीकार और कैसे करोगे प्रार्थना? तुम निंदा करने वाले बने रहोगे; स्वीकृति संभव न होगी। प्रेम में, पहली बार तुम वीकार करते हो। प्रेम में पहली बार तम जान पाये कि अर्थ मौजद है और जीवन अर्थपर्ण है। प्रेम
पहली बार तम अनभव करते हो कि तम इस संसार के अपने ही हो, न तो अजनबी हो और न ही कोई बाहरी आदमी। प्रेम में, पहली बार एक छोटा-सा घर निर्मित होता है। प्रेम में, पहली बार तुम अनुभव करते हो शांति। कोई तुम्हें प्यार करता है और तुम्हारे साथ प्रसन्नता अनुभव करता है। पहली बार तुम भी स्वीकार करते हो स्वयं को। वरना, कैसे तुम स्वीकार करोगे स्वयं को? जीवन में एकदम बचपन से ही तुम्हें सिखाया गया है स्वयं को निंदित करना, अस्वीकृत करना। ऐसा मत करो, वैसे मत बनो'-हर कोई उपदेश देता रहा है तुम्हें और हर कोई कोशिश करता रहा है तुम्हें समझाने की कि तुम बिलकुल गलत हो और तुम्हें स्वयं को सुधारना है।
ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी बहुत बीमार थी। वह अस्पताल में थी। मुल्ला रोज आया करता था। वह डाक्टरों से और नर्सी से पूछता रहता उसके बारे में और वे कह देते, 'उसकी हालत सुधर रही है।' और उसकी हालत ज्यादा और ज्यादा बिगड़ रही थी रोज, लेकिन डाक्टर और नौं ने