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कृष्णमूर्ति लोगों से कहे चले जाते हैं कि कोई विधि नहीं है, और प्रत्येक प्रवचन के बाद लोग पूछते हैं, 'फिर कैसे? फिर पहुंचे कैसे?' वे कंधे उचका भर देते हैं और क्रोधित हो जाते हैं, 'मैंने कहा है न तुमसे कि कोई विधि है ही नहीं, तो मत पूछना कैसे, क्योंकि कैसे की बात पूछना फिर विधि की बात पूछना ही है। और जो पूछते हैं, ये कोई नए लोग नहीं हैं। कृष्णमूर्ति के पास लोग हैं जो उन्हें सुनते आ रहे हैं तीस या चालीस वर्षों से तुम उनके प्रवचनों में पाओगे बहुत पहले के पुराने लोग वे निरंतर गुनते रहे हैं उन्हें धार्मिक भाव से निष्ठापूर्वक वे सुनते हैं उन्हें वे हमेशा जाते है जब कभी वे वहां तो रो है, वे हमेशा जाते और सुनते हैं। तुम करीब-करीब वही चेहरे पाओगे वहां वर्षों वर्षों तक, और फिर-फिर पूछते हैं अपनी घाटियों से, 'लेकिन कैसे? और कृष्णमूर्ति केवल अपने कंधे झटक देते और कह देते हैं, कोई 'कैसे है नहीं। तुम बस समझो, और तुम पहुंच जाओ। कहीं कोई मार्ग नहीं है।
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तिलोगा, बोधिधर्म, कृष्णमूर्ति-वे आते और चले जाते हैं। उनसे कोई बहुत मदद नहीं आती। लोग थी जो उन्हें सुनते हे, आनंद उठाते हैं उन्हें सुनने का। वे एक निश्चित बौद्धिक समझ तक भी पहुंच जाते हैं, लेकिन वे बने रहते है घाटी में। मैंने स्वयं बहुत से लोगों को देखा है, जो सुनते हैं कृष्णमूर्ति को, लेकिन एक भी ऐसा व्यक्ति मेरे देखने में नहीं आया जो उन्हें सुन कर अपनी घाटी के पार चला गया हो। वे बने रहते हैं घाटी में और बोलने लगते हैं कृष्णमूर्ति की भांति ही, बस इतना ही। वे कहने लगते हैं दूसरे लोगों को कि कोई रास्ता नहीं और वे बने रहते हैं घाटी में ही
पतंजलि रहे हैं बड़ी अद्भुत मदद अतुलनीय। लाखों गुजर चुके हैं इस संसार से पतंजलि की सहायता से, क्योंकि वे अपनी समझ के अनुसार बात नहीं कहते, वे तुम्हारे साथ चलते हैं और जैसे-जैसे तुम्हारी समझ विकसित होती है, वे ज्यादा गहरे और गहरे और गहरे जाते हैं। पतंजलि पीछे हो लेते हैं शिष्य के; तिलोपा चाहेंगे शिष्य का उनके पीछे चलना । पतंजलि तुम तक आते हैं; तिलोपा चाहेंगे तुम्हारा उन तक चले आना । और निस्संदेह, पतंजलि तुम्हारा हाथ थाम लेते हैं और धीरे- धीरे, वे तुम्हें संभावित उच्चतम शिखर तक ले जाते हैं, वे शिखर जिनकी बात तिलोपा करते हैं लेकिन उस ओर तुम्हें ले नहीं जाते, क्योंकि वे कभी नहीं आएंगे तुम्हारी घाटी तक। वे बने रहेंगे अपने शिखर पर और चिल्लाते रहेंगे वहीं से । वस्तुतः वे क्षुब्ध कर देंगे बहुत सारे लोगों को क्योंकि वे रुकेंगे नहीं।. वे चोटी पर से चिल्लाते रहेंगे, ऐसा संभव है और कोई रास्ता नहीं है, और कोई विधि नहीं है। तुम बस आ सकते हो। वह घटता है, तुम कर नहीं सकते!' वे क्षुब्ध कर देते हैं।
जब कहीं कोई विधि नहीं होती, तो लोग क्षुब्ध हो जाते हैं और वे रोक देना चाहेंगे उनको, कि चिल्लाएं नहीं। क्योंकि यदि कोई राह नहीं, तो कैसे कोई बढ़े घाटी से शिखर तक? वह व्यक्ति तो नासमझी की बात कह रहा है। लेकिन पतंजलि बहुत युक्तियुक्त हैं, बहुत समझदार वे बढ़ते हैं चरण चरण, वे तुम्हें ले चलते वहां से जहां कि तुम हो वे आते हैं घाटी तक तुम्हारा हाथ थाम लेते हैं और कहते हैं, 'एक-एक करके कदम उठाओ।'