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आदमी मरता है और जन्म ले लेता है नये बच्चे के रूप में। इसलिए यदि वह अतीत याद रख सकता हो तो वह पहले से ही बूढ़ा होगा। सारा प्रयोजन ही खो जायेगा
प्रकृति तुम्हारे लिए अतीत को बंद कर देती है, अत: प्रत्येक जन्म नया जन्म जान पड़ता है। लेकिन तुम फिर संचित करने लगते हो। जब यह बहुत ज्यादा हो जाता है, प्रकृति तुम्हें फिर मार डालेगी। कोई व्यक्ति अपने पिछले जन्मों को जानने में सक्षम होता है केवल तभी, जब वह अतीत के प्रति मर चुका हो। तब प्रकृति द्वार खोल देती है। तब प्रकृति जानती है कि अब उसे तुमसे छुपाने की जरूरत न रही। तुम सतत नवीनता को, जीवन की ताजगी को उपलब्ध हो चुके। अब तुम जानते हो कि कैसे मरा जाये। प्रकृति को तुम्हें मारने की आवश्यकता नहीं।
___ एक बार तुम जान लेते हो कि तुम अतीत नहीं हो, तुम भविष्य नहीं हो बल्कि चीजों की सच्ची वर्तमानता हो, तब सारी प्रकृति अपने रहस्यद्वारों को खोल देती है। तुम्हारा संपूर्ण अतीत, बहुत-बहुत ढंग से जीये हुए लाखों जन्म, सब उद्घाटित हो जाते हैं। अब यह अतीत उद्घाटित हो सकता है क्योंकि तुम इसके द्वारा बोझिल नहीं होओगे। अब कोई अतीत तुम्हें बोझ नहीं दे सकता। और अगर तुमने निरंतर नये बने रहने की कीमिया जान ली है तो यह तुम्हारा अंतिम जन्म होगा, क्योंकि तब तुम्हें मारने की और पुनर्जन्म लेने में तुम्हें मदद देने की कोई आवश्यकता ही न रही। कोई आवश्यकता नहीं। तुम स्वयं ही यह कर रहे हो हर क्षण।
बुद्ध के मिटने और फिर कभी वापस न लौटने का, बुद्ध पुरुष के फिर कभी जन्म न लेने का यही है अर्थ; यही है रहस्य। ऐसा होता है क्योंकि अब वह मृत्यु को जानता है, और वह निरंतर इसका उपयोग करता है। हर क्षण जो कुछ गुजर गया,वह गुजर गया और मर चुका। और वह उससे मुक्त रहता है। हर क्षण वह मरता है अतीत के प्रति और जन्म लेता है पुन:। यह बात एक प्रवाह बन जाती है; नदी का ऐसा प्रवाह, जो हर क्षण ताजा जीवन पा रहा है। तब प्रकृति को कोई आवश्यकता नहीं रहती सत्तर वर्षों की मूढ़ता, सड़ांध एकत्र करने की और आदमी की इस जर्जरता को नष्ट करने की, उसे फिर जन्म लेने में सहायता देने की और उसे फिर से उसी चक्र में डालने की कोई आवश्यकता नहीं रहती। वह फिर वही कूड़ा-करकट एकत्र करेगा।
यह एक दुश्चक्र है। हिंदुओं ने इसे कहा है 'संसार'। संसार का अर्थ है चक्र। वह चक्र फिर-फिर उसी मार्ग पर घूमता जाता है। बुद्ध पुरुष वही होता है जो बाहर गिर चुका है, बाहर हो चुका है उस चक्र से। वह कहता है,' अब और नहीं। प्रकृति को मुझे मारने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि अब मैं हर क्षण मारता हूं स्वयं को।'
__ और यदि तुम ताजे होते हो, तो प्रकृति को तुम्हारे लिए मृत्यु का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन तब जन्म पाने की भी कोई भी आवश्यकता नहीं होती। तुम निरंतर जन्म का उपयोग कर रहे हो। हर क्षण तुम अतीत के प्रति मरते हो और वर्तमान में जन्म लेते हो।