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फिर वह भी मर गया और उसका भी एक उत्तराधिकारी था। उस गांव पर फिर मुसीबत आयी इसलिए गांव के लोग फिर उसके पास आये। वह अपनी आराम कुर्सी पर बैठा था। उसने कहा, 'मैं कहीं नहीं जाना चाहता। सुनो ईश्वर! आप तो सब जगह हैं। प्रार्थना मुझे आती नहीं। किसी कर्मकांड का मुझे कुछ पता नहीं। लेकिन उससे कुछ नहीं होता। मेरे जानने की तो बात ही नहीं। आप सब कुछ जानते हैं इसलिए क्या प्रयोजन है प्रार्थना का? क्या उपयोग है कर्मकांड का और क्या प्रयोजन है किसी विशेष पवित्र स्थान का? मुझे तो केवल अपने पूर्वज रबाइयों की कहानियों का ही पता है। मैं तो वही कहानी आपको सुनाऊंगा कि ऐसा बालशेम के समय में घटित हुआ, फिर उसका उत्तराधिकारी हुआ, फिर उसका भी उत्तराधिकारी हुआ। और ऐसी कहानी है। अब वही करें जो ठीक है और इतना ही काफी होगा।' और विपत्ति चली गयी। ऐसा कहा जाता है कि परमात्मा को वह कहानी बड़ी प्यारी
लगी।
लोग अपनी कहानियों से प्रेम करते हैं और उनका परमात्मा भी उन्हें प्रेम करता है। और कहानियों के द्वारा तुम्हें कुछ आभास मिल सकते है। लेकिन पतंजलि किसी बोध कथा का प्रयोग नहीं करेंगे। जैसे कि मैंने तुमसे कहा, वे आइंस्टीन और बुद्ध का जोड हैं। यह एक बहुत ही दुर्लभ संयोग है। उनके पास बुद्ध का आंतरिक साक्षी-भाव था और आइस्टीन के मन जैसा क्रिया तंत्र था।
अत: वे न तो आस्तिक है और नहीं नास्तिक। आस्तिकता किस्सा-कहानी है, नास्तिकता प्रति-कहानी है। वे हैं मात्र काल्पनिक कथाएं मानव-निर्मित नीति कथाएं हैं। कइयों को एक रास्ता भा जाता है और कइयों को दूसरा। पतंजलि की कहानियो मे, काल्पनिक कहानियो में कोई दिलचस्पी नही। वे रुचि रखते हैं नग्न सत्य में। वे उसे वस्त्र तक नहीं पहनायेंगे। किसी तरह का आवरण नहीं रखेंगे उस पर, वे उसे नहीं सजायेंगे। आवरण-सज्जा उनका ढंग नहीं है, इसे ध्यान में रखना।
न ही रूखी-सूखी धरती पर चलेंगे, मरुस्थल जैसी भूमि पर। लेकिन मरुस्थल का अपना सौदर्य है। उसमे वृक्ष नहीं होते, उस में नदिया नही होती, लेकिन उसका एक अपना विस्तार होता है। किसी जगल की तुलना उससे नहीं की जा सकती। जंगलों का अपना सौदर्य है, पहाडियों का अपना सौदर्य है, नदियों की अपनी सुदरताएं हैं। मरुस्थल की अपनी विराट अनतता है।
हम मरुभूमि की राह से चलेंगे। साहस की आवश्यकता है। पतंजलि तुम्हें एक भी वृक्ष नहीं देगें कि तुम उसके नीचे आराम कर सको। वे तुम्हें कोई कहानी नहीं देगे, देंगे केवल नग्न तथ्य। वे किसी एक भी अनावश्यक शब्द का उपयोग नहीं करेंगे। इस लिए एक शब्द है 'सूत्र'. सूत्र का अर्थ है मूलभूत अल्पतम।
___ एक सूत्र एक पूरा वाक्य तक नहीं है! वह तो अल्पतम सार भूत है। वह तो ऐसे है जैसे तुम तार देते हो और तुम अनावश्यक शब्द काटते जाते हो। तब वह एक सूत्र हो जाता है क्योंकि केवल नौ या दस शब्द उसमें रखे जा सकते हैं। अगर तुम पत्र लिख रहे होते तो तुमने दस पन्ने भर दिये