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हर क्षण तुम डरे हुए हो कि कोई तुम्हारा व्यक्तित्व न कुचल दे। तब सारा संसार एक चिंता बन जाता है। ईश्वर की निजता है, पर व्यक्तित्व नहीं। जो कुछ वह है, वही वह दिखाता है। जो कुछ वह भीतर है, वही वह बाहर है। वस्तुत: उसके लिए भीतर और बाहर तिरोहित हो गये हैं।
'ईश्वर सर्वोत्कृष्ट है।' अंगेजी में इसे ऐसा कहा जाता है, 'गॉड इज दि सुप्रीम रूलर।' इसीलिए मैं कहता हूं कि पतंजलि के विषय में गलतफहमी बनी हुई है। संस्कृत में वे ईश्वर को कहते हैं 'पुरुष-विशेष' - सवोत्कृष्ट निज सत्ता। कोई रूलर, कोई शासक नहीं। मैं 'ईश्वर' को 'दि सुप्रीम' ही कहना चाहंगा। वह दिव्य चेतना की वैयक्तिक इकाई है। ध्यान रहे, वैयक्तिक है, सर्वसामान्य नहीं है, क्योंकि पतंजलि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर है।
'वह जीवन के दुखों से, कर्म से और उसके परिणाम से अछता है।
__ क्यों? क्योंकि जितने ज्यादा तुम वैयक्तिक होते हो, जीवन उतनी ज्यादा विभिन्न गुणवत्ता पा लेता है। एक नया आयाम खुल जाता है-उत्सव का आयाम। जितना अधिक तुम संबंध रखते हो व्यक्तित्व के साथ और बाहर के साथ, बाहरी परतों के साथ, ऊपरी सतह के साथ, उतना अधिक तुम्हारे जीवन का आयाम बन जाता है एक कर्म। तम परिणाम के विषय में चिंतित होते हो, इस बारे में कि तुम्हें लक्ष्य मिलेगा या नहीं। हमेशा चिंतित ही रहते हो कि चीजें तुम्हें मदद देने वाली हैं या नहीं। यह चिंता, कि कल क्या होगा?
वह व्यक्ति, जिसका जीवन एक उत्सव बन गया है, कल की चिंता नहीं करता, क्योंकि वह जीता है केवल आज में। जीसस कहते हैं, 'लिली के इन फूलों की ओर देखो। वे इतने सुंदर हैं।' क्योंकि उनके लिए जीवन कोई कर्म नहीं है। नदियों की ओर देखो, सितारों की ओर देखो। मनुष्य के अंतिरिका हर चीज सुंदर और पवित्र है, क्योंकि सारा अस्तित्व एक उत्सव है। वहां कोई परिणाम के लिए चिंतित नहीं है। क्या वृक्ष को इसकी चिंता होती है कि फूल आयेंगे या नहीं? क्या नदी को चिंता है कि वह सागर तक पहुंचेगी या नहीं? मनुष्य के अंतिरिका कहीं किसी को चिंता नहीं। मनुष्य क्यों चिंतित है? क्योंकि वह जीवन को कर्म की भांति देखता है, लीला की भांति नहीं। और यह सारा अस्तित्व एक लीला है, एक उत्सव है।
पतंजलि कहते हैं कि जब कोई स्वयं के केंद्र में अवस्थित हो जाता है, तो वह एक लीला बन जाता है। तब लीला होती है। जीवन एक उत्फुल्ल क्रीड़ा है। और यह सुंदर है। परिणाम की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। परिणाम से कछ लेना-देना नहीं है। यह बिलकल असंगत है जो भी तम कर रहे हो, वह स्वयं में मूल्य रखता है। मैं तुमसे बात कर रहा हूं; तुम मुझे सुन रहे हो। लेकिन तुम उद्देश्य लेकर सुन रहे हो, और मैं निरुद्देश्य होकर बात कह रहा हूं। तुम उद्देश्य सहित सुन रहे हो, और तुम आशा करते हो कि सुनने के द्वारा तुम्हें कुछ प्राप्त होने वाला है-कोई ज्ञान, कोई सूत्र, कुछ तरकीबें, कुछ विधियां, कोई समझ मिलने वाली है। और फिर तुम उनसे कोई रास्ता बना