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व्यक्तित्व वह होता है जिसे तुम प्रस्तुत करते हो; यह एक ऊपरी रूप होता है, एक मुखौटा। लेकिन अगर तुम्हारे बाथरूम में कोई नहीं हो, तो जब तक कि तुम दर्पण में न देख लो तब तक तुम्हारा कोई व्यक्तित्व नहीं होता। तब फौरन व्यक्तित्व चला आता है क्योंकि तुम स्वयं 'दूसरे' का कार्य करना शुरू कर देते हो और राय देने लगते हो। तुम चेहरे को देखते हो और कह देते हो, 'सुंदर।' अब तुम बंटे हए हो। अब तम दो हो। तुम स्वयं के बारे में राय दे रहे हो। लेकिन बाथरूम में जब कोई नहीं होता, जब तुम बिलकुल निर्भय होते हो और आश्वस्त होते हो कि कोई नहीं देख रहा दरवाजे की कुंजी की सुराख में से, तुम व्यक्तित्व गिरा देते हो। क्योंकि अगर कोई सूराख में से देख रहा होता, तो फिर से व्यक्तित्व
केवल बाथरूम में तुम व्यक्तित्व गिरा देते हो। इसलिए बाथरूम इतना स्फूर्तिदायक होता है। तुम स्नान करके बाहर आते हो-सुंदर, ताजे! कोई बाह्य व्यक्तित्व न रहा; तुम एक निजता हो जाते हो। निजता वह है जो तुम हो, व्यक्तित्व वह होता है जैसा तुम अपने को दिखाते हो। व्यक्तित्व तुम्हारा बाहरी चेहरा है; निजता तुम्हारा अस्तित्व है। पतंजलि की धारणा में, ईश्वर का कोई व्यक्तित्व नहीं है। वह एक वैयक्तिक इकाई है, एक निजता
यदि तुम विकसित होते हो तो कुछ समय बाद दूसरों से आये मूल्यांकन बचकाने हो जाते हैं। तुम उनकी परवाह नहीं करते। जो वे कहते हैं, वह निरर्थक होता है। वे जो कहते हैं, वह कुछ अर्थ नहीं रखता। जो तुम हो, जो तुम होते हो, यही बात अर्थ रखती है। इससे कुछ नहीं होता कि वे कह दें 'सुंदर।' यह व्यर्थ है। यदि तुम सुंदर हो तो असली बात है। जो वे कहते हैं,वह असंगत होता है। जो तुम हो-वास्तविक तुम, प्रामाणिक तुम, वही है निजता।
जब तुम बाह्य व्यक्तित्व को गिरा देते हो तब तुम संन्यासी हो जाते हो। जब तुम व्यक्तित्व को त्याग देते हो, तुम संन्यासी हो जाते हो। तुम एक वैयक्तिक इकाई बन जाते हो। अब तम अपने प्रामाणिक केंद्र द्वारा जीते हो। जब तुम दिखावा नहीं करते, तब तुम्हें कोई चिंता नहीं रहती। जब तुम स्वयं को प्रस्तुत करने का रुख नहीं अपनाते, तो दूसरे जो कहते हैं उसका तुम पर प्रभाव नहीं पड़ता। जब तुम दिखावा नहीं करते, तो तुम निर्लिप्त हुए रहते हो। व्यक्तित्व निर्लिप्त नहीं रह सकता। यह एक बहुत नाजुक चीज है। यह तुम्हारे और दूसरे के बीच निर्मित होता है, और यह दूसरे पर निर्भर करता है। दूसरा अपना मन बदल सकता है; वह तुम्हें संपूर्णतया नष्ट कर सकता है। तुम किसी खी की ओर देखते हो। वह मुसकुरा देती है, और तुम इतना सुंदर अनुभव करते हो उसकी मुसकान के कारण। लेकिन यदि आंखों में घृणा भर वह मुंह फेर लेती है, तब तुम एकदम टूट जाते हो। वस्तुत: तुम टूटे हुए हो क्योंकि तुम्हारा व्यक्तित्व उसके जूतों के नीचे फेंका गया था। वह तुम पर से गुजर जाती है। वह देखती तक नहीं।