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बौद्धिक होती है, और गहरे तल में अहंकार उलझा होता है। यह आदमी दार्शनिक हो जायेगा। यह कठोर प्रयत्न करेगा। वह सोचेगा, ध्यान से विचारेगा, लेकिन वह ध्यान कभी न करेगा। वह तर्कसंगत ढंग से चिंतन-मनन करेगा; बौद्धिक ढंग से वह कई सूत्र ढूंढ लेगा। वह एक पद्धति का निर्माण कर लेगा, लेकिन सारी चीज उसका अपना प्रक्षेपण होगी।
सत्य को तुम्हारी समग्र रूप में आवश्यकता है। निन्यानबे प्रतिशत भी काम न देगा; तुम्हारा ठीक सौ प्रतिशत चाहिए। और सिर तो केवल एक प्रतिशत ही है। तुम बिना मस्तिष्क के रह सकते हो। जानवर बिना मस्तिष्क के जी रहे है, वृक्ष बिना मस्तिष्क के जी रहे है। जीवित बने रहने में मस्तिष्क कोई इतनी जरूरी चीज नहीं है। तुम आसानी से इसके बिना जी सकते हो। वस्तुत: तुम मस्तिष्क के साथ जीने की अपेक्षा मस्तिष्क के बिना ज्यादा आसानी से जी सकते हो यह लाखों जटिलताएं निर्मित करता है। बुद्धि परम आवश्यकता नहीं है, और प्रकृति यह जानती है। यह एक फालतू विलासिता है। अगर तुम्हारे पास पर्याप्त भोजन नहीं होता है, तो शरीर जानता है कि भोजन को कहां जाने देना चाहिए। वह इसे बुद्धि को देना बंद कर देता है।
इसीलिए गरीब देशों में विचारशक्ति विकसित नहीं हो सकती, क्योंकि विचारशक्ति एक सुख-साधन है। जब हर चीज खत्म हो जाती है, जब शरीर को हर चीज पूरी तरह मिल रही होती है, केवल तभी ऊर्जा सिर की ओर सरकती है। जिंदगी में भी ऐसा प्रतिदिन घटित होता है, लेकिन तुम सजग नहीं होते हो। ज्यादा खा लेते हो और तुरंत उनींदा महसूस करने लगते हो। क्या घटता है? शरीर को पचाने के लिए ऊर्जा चाहिए होती है। सिर भुलाया जा सकता है; ऊर्जा पेट की ओर सरकती है। तब सिर चकराया-सा उनींदा अनुभव करता है। ऊर्जा नहीं सरक रही, रक्त नहीं सरक रहा होता सिर की तरफ शरीर की अपनी नीति है, व्यवस्था है।
कुछ बुनियादी चीजें होती हैं, कुछ गैर-बुनियादी चीजें होती हैं। पहले बुनियादी चीजें पूरी कर लेनी होती हैं। पहले इसलिए, क्योंकि गैर-बुनियादी चीजें इंतजार कर सकती हैं। तुम्हारा दर्शन इंतजार कर सकता है लेकिन तुम्हारी क्षुधा इंतजार नहीं कर सकती। तुम्हारा पेट पहले भरना ही चाहिए भूख ज्यादा बुनियादी है। इसी अनुभव के कारण बहुत सारे धर्मों ने उपवास को आजमाया है क्योंकि अगर तुम उपवास करते हो, तो मस्तिष्क नहीं सोच सकता। ऊर्जा इतनी ज्यादा है ही नहीं, इसलिए यह सिर को नहीं दी जा सकती। लेकिन यह एक धोखा है। जब ऊर्जा होगी वहां, तो सिर फिर सोचना शुरू कर देगा। इस प्रकार का ध्यान एक झूठ है।
यदि तुम निरंतर कुछ दिनों तक लंबा उपवास करते हो, तो मस्तिष्क नहीं सोच सकता। ऐसा नहीं कि तुम अ-मन को उपलब्ध हुए। केवल इतना ही हुआ है कि अतिरिक्त ऊर्जा अब तुममें विद्यमान नहीं रही। शारीरिक आवश्यकताएं सबसे पहले आती हैं। शारीरिक आवश्यकताएं बुनियादी होती हैं, महत्वपूर्ण होती हैं, मस्तिष्क की आवश्यकताएं गौण हैं, फालतू । यह तुम्हारे घर की अर्थव्यवस्था जैसा है। अगर तुम्हारा बच्चा मर रहा हो तो तुम टीवी सेट बेच दोगे। इसमें कुछ ज्यादा