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देखा-स्व पुराना परिचित, जो दूसरी ओर था। वह चिल्लाया, 'नसरुद्दीन, तुमने कैसे सड़क पार की? 'नसरुद्दीन बोला, 'मैंने कभी नहीं पार की। मैं तो पैदा हुआ इस ओर।'
लोग है जो सदा सोचते रहते हैं दूर के किनारे की। दूर की बात हमेशा सुंदर लगती है। दूर का एक अपना ही चुंबकीय आकर्षण होता है, क्योंकि यह धुंध में लिपटा होता है। लेकिन सागर वही है। यह तुम पर है चुनना। उस किनारे पर जाने में कुछ गलत नहीं है लेकिन जाओ सही कारणों से। हो सकता है, तुम इस किनारे से छलांग लगाना सिर्फ टाल ही रहे होओ। अगर नाव तुम्हें दूसरे किनारे तक ले भी जाती है, तो जिस क्षण तुम उस किनारे पर पहुंचते हो, तुम इस किनारे की सोचने लगोगे, क्योंकि तब यह बात बहुत दूर की बात होगी। और बहुत बार, बहुत जन्मों से तुमने यही किया है। तुमने किनारे बदल लिये हैं, लेकिन तुमने छलांग नहीं लगायी है।
मैंने देखा है तुम्हें इस ओर से उस ओर तक सागर पार करते हुए और उस ओर से इस ओर पार करते हुए। यही है समस्या-वह किनारा बहुत दूर है क्योंकि तुम यहां हो, और जब तुम वहां होते हो तो यह किनारा बहुत दूर हो जायेगा। और तुम एक ऐसी नींद में हो कि तुम बार-बार बिलकुल भूल ही जाते हो कि तुम उस किनारे तक भी जा चुके हो। जिस समय तक तुम दूसरे किनारे पर पहुंचते हो, तुम उस किनारे को भूल जाते हो, जिसे तुम पीछे छोड़ चुके होते हो। जिस समय तक तुम पहुंचते हो, विस्मरण अधिकार जमा लेता है, तुम पर।
तुम दूर की ओर देखते, और फिर कोई कह देता,' श्रीमान, यह रही नाव। आप जा सकते हो दूसरे किनारे पर, और आप लगा सकते हो वहां से छलांग क्योंकि परमात्मा बहुत-बहुत दूर है।' और
देते उस किनारे को छोड़ने की। पतंजलि त्म्हें दूसरे किनारे पर जाने के लिए नाव देते हैं। लेकिन जब तुम दूसरे पर पहुंच चुके होते हो, तो झेन सदा छलांग देगा तुम्हें। अंतिम छलांग झेन दवारा होती है। इस बीच तम बहत सारी चीजें कर सकते हो, वह कोई सार नहीं है। जब कभी तुम छलांग लगाओगे, वह अचानक छलांग होगी। यह क्रमिक नहीं हो सकती।
___ इस किनारे से उस किनारे तक जाना यही सारी क्रमिकता है। लेकिन इसमें गलत कुछ भी नहीं है। अगर तुम यात्रा का आनंद लेते हो तो यह संदर है, क्योंकि 'वह' यहीं है, वह मध्य में है, वह उस किनारे पर भी है। दूसरे किनारे पर जाने की जरूरत नहीं है। तुम मध्य से भी छलांग लगा हो, नाव से ही। तब नाव ही किनारा बन जाती है। जहां कहीं से तुम छलांग लगाते हो वही किनारा है। किसी क्षण तुम लगा सकते हो छलांग, तब जिस बिंदु से तुम छलांग लगाते हो, वह किनारा बन जाता है। अगर तुम छलांग नहीं लगाते, तो वह जगह फिर किनारा नहीं होती। यह तुम पर निर्भर करता है; इसे ठीक से ध्यान में रख लेना।
इसलिए मैं सारे परस्पर-विरोधी दृष्टिकोणों पर बोल रहा हैं जिससे कि तुम हर तरफ से समझ सको और तुम हर तरफ से देख सको वास्तविकता को। फिर तुम निर्णय ले सकते हो। अगर