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चलती चली जाती हैं। तब लाखों चीजों को गिराना होता है-झूठ बोलना गिराना होता है, हिंसा गिरानी होती है, धीरे-धीरे, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, परिग्रह आदि लाखों चीजें जो तुम्हारे पास हैं।
लेकिन इस बीच तुम वही रहते हो कैसे तुम क्रोध गिरा सकते हो, यदि तुमने घृणा को नहीं गिरा दिया है? यदि तुमने ईर्ष्या को नहीं गिरा दिया है, तो कैसे तुम क्रोध गिरा सकते हो? कैसे तुम क्रोध गिरा सकते हो यदि तुमने आक्रामकता को नहीं गिराया' वे अंतर्संबंधित है। तुम कहते हो अब तुम और क्रोधित नहीं होओगे, लेकिन क्या कह रहे हो तुम? बड़ी छूता की बात । तुम घृणा से भरे रहोगे, तुम आक्रामक बने रहोगे, तुम फिर भी शासन जमाना चाहोगे, तुम फिर भी एकदम ऊंचाई पर रहना चाहोगे, और तुम गिरा रहे हो क्रोध को? कैसे तुम इसे गिरा सकते हो? वे बातें अंतर्संबधित हैं।
झेन यही कहता है कि यदि तुम किसी चीज को गिराना चाहते हो, तो इस घटना को समझ लेना कि हर चीज संबंधित है। या तो तुम इसे अभी गिरा दो, या फिर तुम इसे कभी न गिराओगे । स्वयं को धोखा मत दो। तुम मात्र लीपा-पोती कर सकते हो - थोड़ी यहां, एक मरम्मत वहां, और पुराना घर इसके पुरानेपन सहित बना रहता है और जब तुम काम किये चले जाते हो, दीवारों को रंगते हो और सुराखों को भरते हो और यह करते हो और वह करते हो, तो कोई नया जीवन निर्मित कर रहे हो और इस बीच तुम वही बने रहते हो तुम किये जाते हो, यह उतनी ज्यादा गहरी जड़ें जमा लेता है।
तुम सोचते हो कि तुम और जितना ज्यादा इसे
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धोखा मत देना। यदि तुम समझ सकते हो, तो समझना तुरंत होता है। यही है ड्रोन का संदेश। अगर तुम नहीं समझ सकते, तो कुछ करना होता है, और पतंजलि ठीक रहेंगे। तब तुम पतंजलि का अनुसरण करते हो। किसी न किसी दिन तुम्हें समझ तक पहुंच जाना होगा, जहां तुम देखोगे कि यह सारी बात एक चालाकी रही- बच निकलने की तुम्हारे मन की एक चालाकी, वास्तविकता को टाल जाने की टालने की और पलायन की चालाकी और उस दिन अकस्मात तुम गिरा दोगे ।
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पतंजलि क्रमिक हैं, झेन अकस्मात है। यदि तुम अकस्मात नहीं हो सकते, तो बेहतर है क्रमिक हो जाना। कुछ न होने की बजाय न तो यह न ही वह बेहतर होगा तुम क्रमिक ही हो जाओ। पतंजलि भी तुम्हें इसी स्थिति तक लायेंगे, लेकिन वे तुम्हें थोड़ा समय देंगे। यह ज्यादा सुविधापूर्ण है; कठिन है, पर ज्यादा सुविधापूर्ण है। किसी तात्कालिक रूपांतरण की मांग नहीं की जाती, और क्रमिक विकास के साथ मन ठीक बैठ सकत है।'
हेराक्लतु, क्राइस्ट और झेन के द्वारा अंतिम चरण निकट प्रतीत होता है, पतंजलि पहले चरण को भी लगभग असंभव सा बना देते हैं। ऐसा लगता है, स्वयं पर कितना काम करना है इसका अनुमान पाश्रिमात्य लोग शायद ही लगा पाते हो।"