________________ एक छोटा बच्चा चर्च में बैठा हुआ था। पहली बार ही वह आया था, और वह सिर्फ चार साल का था। मां ने उससे पूछा, 'तुमने इसे पसंद किया?' वह बोला, 'संगीत अच्छा है, लेकिन कमर्शियल बहुत लंबा है।' जब तुममें कोई श्रद्धा न हो तब यह कमर्शियल ही होता है। श्रद्धा सम्यक आस्था है, विश्वास असम्यक आस्था है। किसी दूसरे से मत ग्रहण करो धर्म। तुम इसे उधार नहीं ले सकते। वह तो धोखा हुआ। तब तो तुम इसे पा रहे हो इसके लिए बिना कुछ खर्च किये। और हर चीज की कीमत चुकानी होती है। असंप्रशांत समाधि को उपलब्ध होना सस्ता मामला नहीं है। तुम्हें पूरी कीमत चुकानी होती है। और पूरी कीमत है-तुम्हारा समग्र अस्तित्व। ईसाई होना मात्र एक लेबल है; धार्मिक होना लेबल नहीं है। तुम्हारा संपूर्ण अस्तित्व संलग्र होता है। यह एक प्रतिबदधता होती है। लोग मेरे पास आते है और वे कहते हैं, 'हम आपसे प्रेम करते हैं। जो कुछ भी आप कहते है, अच्छा है। किंतु हम संन्यास नहीं लेना चाहते क्योंकि हम वचनबद्ध नहीं होना चाहते।' पर जब तक तुम वचनबद्ध न होओ, अंतर्ग्रस्त न होओ, तुम विकसित नहीं हो सकते, क्योंकि तब कोई संबंध नहीं होता। तब तुम्हारे और मेरे बीच शब्द होते है, संबंध नहीं। तब मैं एक शिक्षक हो सकता हूं लेकिन मैं तुम्हारा गुरु नहीं होता। तब तुम एक विद्यार्थी हो सकते हो, पर शिष्य नहीं। श्रद्धा प्रथम दवार है, दूसरा दवार है वीर्य। वह भी कठिन है। इसे प्रयत्न की तरह अनूदत किया जाता है। नहीं, प्रयत्न तो इसका हिस्सा मात्र है। वीर्य शब्द का अर्थ बहुत सारी चीजों से है, लेकिन इसका बहुत गहन अर्थ है-जैविक ऊर्जा। अनेक अर्थों में वीर्य का एक अर्थ है शुक्राणु कामऊर्जा। अगर तुम ठीक से इसका अनुवाद करना चाहते हो, तो वीर्य है जैविक ऊर्जा, तुम्हारी समग्र ऊर्जा, तुम्हारा ऊर्जामय रूप। निस्संदेह, यह ऊर्जा केवल प्रयास द्वारा लायी जा सकती है; इसलिए इसका एक अर्थ प्रयास है। लेकिन यह बड़ा क्षुद्र अर्थ हुआ; उतना विराट नहीं है जितना कि वीर्य शब्द। वीर्य का अर्थ होता है कि तुम्हारी संपूर्ण ऊर्जा को इसमें ले आना। केवल मन काम न देगा। तुम मन से हां कह सकते हो,लेकिन यह काफी न होगा। कुछ भी बचाये बिना स्वयं को पूरा का पूरा दांव पर लगाने की जरूरत होती है-यही है वीर्य का अर्थ। और यह तभी संभव होता है, जब श्रदधा हो। अन्यथा तुम कुछ बचा लोगे मात्र सुरक्षित होने के लिए ही, निरापद होने के लिए ही। तम्हें लगेगा, 'यह आदमी शायद हमें गलत दिशा में ले जा रहा हो और हम किसी भी क्षण पीछे हटने की सुविधा बनाये रखना चाहते हैं। एक क्षण में हम कह सकें कि बस, जितना है काफी है, अब और नहीं।'