________________ गया था। उदाहरण के लिए : व्यापार, व्यवसाय परिवारों से संबंधित थे आनुवंशिकता द्वारा। एक पिता बच्चे को दीक्षा देता होगा व्यवसाय में, और स्वभावत: बच्चा अपने पिता पर आस्था रखता था। अगर पिता किसान या कृषक होता, तो वह बच्चे को खेतों पर ले जाता और वह उसे खेती की दीक्षा देता। जो कुछ व्यवसाय, जो कुछ भी व्यापार वह कर रहा होता था, वह युसी की दीक्षा बच्चे को देता। पूरब में, बाहरी संसार में भी दीक्षा मौजूद होती थी। हर कुछ दीक्षित होने दवारा किया जाता था। कोई जो जानता था,तुम्हें रास्ता दिखाता था। इससे बहुत ज्यादा मदद मिली क्योंकि फिर तुम दीक्षा से, तुम्हें ले जाने वाले से परिचित होते थे। तब,जब आंतरिक दीक्षा का समय आता था तो तुम श्रद्धा कर सकते थे। श्रद्धा, आस्था कहीं ज्यादा सरल थी उस संसार में जो टेक्यालाजिकल नहीं था। टेकालाजिकल संसार में चालाकी, हिसाब-किताब, गणित, कुशलता की जरूरत होती है, निर्दोषता की नहीं। टेक्यालाजिकल संसार में अगर तुम निर्दोष हो, तो नासमझ मालूम पड़ोगे। पर अगर तुम चालाक हो तो तुम होशियार, बुद्धिमान दिखाई दोगे। हमारे विश्वविद्यालय इसके अतिरिका कुछ नहीं कर रहे। ये तुम्हें कुशल, चालाक, स्वार्थी बना रहे हैं। ज्यादा हिसाबी-किताबी, और ज्यादा धूर्त होते हो, तो तुम संसार में अधिक सफल हो जाओगे। अतीत में बिलकुल विपरीत दशा थी पूरब में। अगर तुम धूर्त होते थे तो तुम्हारे लिए बाहर के संसार में सफल होना भी असंभव होता था। केवल निर्दोषता स्वीकार की गयी थी। बाह्य कुशलता की कोई बहुत ज्यादा कीमत न थी, बल्कि आंतरिक गुण बहुत ज्यादा मूल्यवान माना गया था। अगर कोई व्यक्ति चालाक होता और वह ज्यादा अच्छा जूता बनाता, तो पुराने समय में पूरब में कोई उसके पास न जाता। वे उस व्यक्ति के पास जाते जो सरलचित्त होता था। वह शायद उतने अच्छे जूते न बनाता होता, लेकिन वे उस व्यक्ति के पास जाते जो निर्दोष होता था क्योंकि जूता मात्र एक चीज होने से कुछ ज्यादा है। यह उस व्यक्ति का गुण-स्वभाव साथ में लिये होता है जिसने इसे बनाया होता है। तो अगर धूर्त और चालाक शिल्पी होता, तो कोई उसके पास न जाता। वह कष्ट उठाता, वह असफलता पाता। लेकिन अगर वह गुणवान चित्त वाला होता, निर्दोष व्यक्तित्व वाला,तो लोग उसके पास जाते। चाहे उसकी चीजें बदतर होतीं, लोग उसकी चीजों को ज्यादा महत्वपूर्ण समझते। कबीर एक जुलाहे, एक बुनकर थे और वे बुनकर ही रहे। सम्बोधि प्राप्ति के बाद भी उन्होंने बुनाई जारी रखी। और वे इतने आनंदपूर्ण थे, इतने आनंदमग्न कि उनकी बुनाई बहुत अच्छी नहीं हो सकती थी। वे नाच रहे होते और गा रहे होते और बुन रहे होते! बहुत गलतियां होती और बहुत भूलें होतीं, लेकिन उनकी चीजें मूल्यवान जानी जाती, अति मूल्यवान।