________________ निर्धन, क्योंकि वे मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश करेंगे।' और जीसस इसे स्पष्ट कर देते हैं कि उनका मतलब है 'अभिमान में निर्धन।' उनके पास दावा करने को कुछ नहीं। वे नहीं कह सकते, 'मेरे पास यह है।' वे किसी को कब्जे में नहीं रखते न शान, न धन, न ही सत्ता या प्रतिष्ठा। वे किसी पर मालकियत नहीं बनाते। वे निर्धन है। वे दावा नहीं कर सकते, 'यह मेरा हम दावा करते ही रहते हैं; 'यह मेरा है, वह मेरा है।' जितना ज्यादा हम दावा कर सकते हैं उतना ज्यादा हम अनुभव करते, मैं हूं। बाह्य जगत में तुम्हारे मन का क्षेत्र जितना बड़ा होता है उतने ज्यादा तुम होते हो। अंतर्जगत में जितना कम होता है मन का क्षेत्र, उतने विशाल तुम होते हो। और जब मन का क्षेत्र मिट जाता है पूरी तरह और तुम शून्य हो जाते हो, तब-तब तुम महानतम होते हो। तब तुम होते हो विजयी। तब विजय घट चुकी है। योद्धा-जैसे भावों वाला चित्त, संघर्ष लड़ाई क्ले नियमों-अधिनियमों के प्रति अतिचितित, हिसाब-किताब योजनाएं बनाने वाला मन ही भीतर चला जाता है। क्योंकि यही तुमने बाहर सीखा है। तुम और कुछ जानते नहीं हो। इसलिए सदगुरु की आवश्यकता है। वरना तुम अपने पुराने तौर-तरीके आजमाते चले जाओगे जो एकदम असंगत होते हैं अंतर्जगत में। इसलिए दीक्षा की आवश्यकता है। दीक्षा में अंतर्निहित होता है कि कोई है जो तुम्हें वह मार्ग दिखा सके जिस पर तुम कभी चले नहीं हो। कोई जो तुम्हें अपने द्वारा झलक दे सके उस संसार की, उस आयाम की, जो तुम्हारे लिए बिलकुल अज्ञात है। तुम करीब-करीब अंधे हो उसके प्रति। तुम उसे नहीं देख सकते। क्योंकि आंखें केवल वही देख सकती हैं जो कुछ देखना उन्होंने सीखा है। अगर तुम यहां आते हो और तुम दर्जी हो तो तुम चेहरों की ओर नहीं देखते, तुम वस्त्रों की ओर देखते हो। चेहरे कुछ बहुत अर्थ नहीं रखते, लेकिन कपड़ों को देखने भर से ही तुम जान लेते हो किस प्रकार का आदमी है। तुम एक विशेष भाषा जानते हो। अगर तुम जूता बनाने वाले हो, तो तुम्हें वस्त्रों की ओर देखने की भी जरूरत नहीं होती। जूतों से पता चलेगा। एक चमार बस सड़क पर देखता रह सकता है और वह जानता है, कौन गजर रहा है। वह आदमी कोई बड़ा नेता है या नहीं। केवल जतों को देखते हए वह बता सकता है कि वह कोई कलाकार है, बोहेमियन है, हिप्पी है, या धनवान; वह सुसंस्कृत, शिक्षित, अशिक्षित है या नहीं; वह ग्रामीण है या कौन है। केवल जूतों को देखने भर से वह जान लेता है क्योंकि जूते सारी खबर दे देते हैं। मोची वह भाषा जानता है। अगर कोई आदमी जीवन में जीत रहा हो, तो उसके जूते की अलग ही चमक होती है। अगर वह जीवन में हारा हुआ हो, तो उसके जूते हारे हुए लगते हैं। तब जूता फीका-फीका होता है। देख-रेख करवाया हुआ नहीं होता। और जूता बनाने वाला इसे जानता है।. उसे तुम्हारे चेहरे की ओर देखने की जरूरत नहीं है। जूता ही उसे हर बात बता देगा, जो वह जानना चाहता है।