________________ एक बहुत लंबा-चौड़ा, बहुत मजबूत आदमी खड़ा हो गया और बोला, 'मैंने किया है। क्या कहना है इस बारे में?' तो नसरुद्दीन बोला, 'शुक्रिया जनाब! आपने बड़ा सुंदर काम किया है। मैं तो आपको बताने के लिए अंदर आया कि पहला लेप सूख गया है।' अगर तुम मजबूत होते हो तो तुम लड़ने के लिए तैयार रहते हो। अगर तुम कमजोर होते हो, तब तुम भाग निकलने को,पलायन करने को तैयार होते हो। लेकिन दोनों अवस्थाओं में तुम ज्यादा मजबूत नहीं बन रहे। दोनों अवस्थाओं में वह दूसरा ही,तुम्हारे मन का केंद्र बन गया है। ये दो वृत्तियां हैं-संघर्ष या पलायन। और दोनों गलत हैं क्योंकि दोनों दवारा मन बलशाली बन गया है। पतंजलि कहते है कि एक तीसरी संभावना है-लड़ो मत और पलायन मत करो। बस, जागरूक रहो। सचेतन रहो। जो कुछ भी है स्थिति, एक साक्षी बनो। 180-181 तुम रस ले सकोगे केवल तभी जब तुम स्वतंत्र होते हो। केवल स्वतंत्र व्यक्ति आनंद ले सकता है। एक व्यक्ति जो भोजन के लिए पागल है और उससे ग्रसित है, उसका आनंद नहीं उठा सकता। शायद वह अपना पेट भर ले, लेकिन उसमें आनंद नहीं ले सकता। उसका भोजन करना हिंसात्मक होता है। यह एक तरह का हनन है। वह भोजन को मार रहा होता है, वह भोजन को नष्ट कर रहा होता है। और प्रेमी जो अनुभव करते है कि उनकी प्रसन्नता दसरे पर निर्भर करती है, वे लड़ रहे होते है; दूसरे पर शासन करने की कोशिश कर रहे होते है; दूसरे को मारने की कोशिश करते है, दूसरे को नष्ट करने की कोशिश में होते हैं। तुम हर चीज में अधिक आनंद पा सकोगे जब तुम जान लेते हो कि वह स्रोत भीतर है। तब सारा जीवन एक खेल बन जाता है, और पल-दर-पल तुम उत्सव मनाये चले जा सकते हो असीम रूप से। यह है पहला कदम, यह चेष्टा। होश और प्रयास सहित तम इच्छारहितता प्राप्त कर लेते हो। लेकिन पतंजलि कहते है कि यह तो पहला ही कदम है क्योंकि प्रयास भी, होश भी अच्छा नहीं है क्योंकि इसका मतलब होता है कि कोई संघर्ष, कोई छिपा हआ संघर्ष फिर भी चल रहा है। वैराग्य का दूसरा और अंतिम चरण, निराकांक्षा की अंतिम अवस्था है- पुरुष के उस परम आला के अंतरतम स्वभाव को जानने से समस्त इच्छाओं का विलीन हो जाना। पहले तुम्हें जानना पड़ता है कि सारी प्रसन्नता जो तुममें घटित होती है, तुम्हीं हो उसके मूल उद्गम। दूसरी बात, तुम्हें अपनी आंतरिक आत्मा के समग्र स्वभाव को जानना पड़ता है। पहली