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पास होने का अर्थ है कि अब तुम्हारा कोई अपना क्षेत्र न बचा। पास होने का अर्थ है कि अब तुम कोमल और असुरक्षित हो। इसका अर्थ है कि अब चाहे कुछ भी हो जाये, तुम किसी तरह की सुरक्षा की बात सोच ही नहीं रहे।
एक शिष्य पास आ सकता है। दो कारणों से: एक तो यह कि वह अंतस केंद्रित हो चुका है; एक यह कि वह केंद्रस्थ होने का प्रयत्न कर रहा है। जो केंद्रस्थ होने का प्रयत्न कर रहा है वह व्यक्ति भी निर्भय हो जाता है उसके पास ऐसा कुछ है जिसे मिटाया नहीं जा सकता। तुम्हारे पास कुछ है नहीं और इसीलिए तुम डरते हो। तुम एक भीड़ हो । भीड़ किसी भी क्षण बिखर सकती है। तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है, जो कुछ भी घटित होने पर चट्टान की तरह ही मजबूती से बना रहे। तुम जी रहे हो बिना किसी ठोस आधार के बिना किसी नींव के ताश के घर की तरह तो निश्रित ही हमेशा भय में जीयोगे। कोई तेज हवा, या हवा का हल्का झोंका तक तुम्हें नष्ट कर सकता है। इसलिए तुम्हें स्वयं का बचाव करना होता है।
और इसी लगातार बचाव के कारण तुम प्रेम नहीं कर सकते, भरोसा नहीं कर सकते, मैत्री नहीं कर सकते। तुम्हारे बहुत से मित्र हो सकते हैं लेकिन मैत्री नहीं है क्योंकि मित्रता समीपता की मांग करती है।
तुम्हारे पति हैं, पत्नियां हैं और तथाकथित प्रेमी प्रेमिकाएं हैं लेकिन प्रेम कहीं नहीं क्योंकि प्रेम तो सन्निकटता की मांग करता है; भरोसा चाहिए उसके लिए। हो सकता है कि तुम्हारे गुरु हैं, शिक्षक हैं, लेकिन शिष्यत्व कहीं नहीं। क्योंकि तुम किसी के अंतस अस्तित्व के प्रति स्वयं को पूरी तरह दे नहीं सकते। तुम स्वयं को मौका नहीं दे पाते कि पूरी तरह गुरु के पास हो सको, गहरी घनिष्ठता बना सको उसके अस्तित्व के साथ, ताकि वह तुम्हें पूर्णस्वप्न से अभिभूत कर सके, अपने प्रवाह में तुम्हें पूरी तरह प्लावित कर सके ।
शिष्य का अर्थ है एक ऐसा खोजी, अन्वेषक, जो भीड़ नहीं है, जो केंद्रीभूत होने की, एकजुट होने की कोशिश कर रहा है, जो कम से कम प्रयास कर रहा है, मेहनत कर रहा है; गहनता से प्रयास कर रहा है, व्यक्ति बनने के लिए, अपनी सत्ता को महसूस करने के लिए, अपना मालिक स्वयं बनने के लिए। तुम तो ऐसे जैसे हो, बस, एक गुलाम हो कितनी - कितनी इच्छाओं के। कितने ही मालिक हैं और बस एक गुलाम हो, और अनेक दिशाओं में खींचे जा रहे हो ।
'अब योग का अनुशासन ।' योग अनुशासन है, साधना है। यह तुम्हारा प्रयत्न है स्वयं को स्वपान्तरित करने का। और इसमें बहुत-सी चीजें समझ लेने जैसी हैं।
'योग चिकित्सा-विज्ञान नहीं है। पश्चिम में आज बहुत से मनोवैज्ञानिक रोगोपचारों का चलन है और पश्चिम के बहुत से मनोवैज्ञानिक समझते हैं कि योग भी चिकित्सा है। ऐसा नहीं है। योग अनुशासन है, साधना है। अन्तर क्या है? अन्तर यही है कि चिकित्सा की आवश्यकता होती है यदि