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प्रवचन 8 - दुःख की संरचना का बोध
दिनांक 1 जनवरी, 1974; संध्या।
वुडलैण्ड्स,बम्बई।
प्रश्न सार:
1-अनासक्ति यात्रा के आरंभ में ही होगी या अंत में?
2-क्या बुदध और महाकाश्यप के बीच घटा संप्रेषण समह के लिए संभव नहीं है?
3-अभ्यास एक मन: शारीरिक संस्कारीकरण है। और इसी के द्वारा समाज मनुष्य को गुलाम बना लेता है। फिर अभ्यास' से मुक्ति कैसे फलित होगी?
4-पश्चिमी-मन का अधैर्य और छिछलापन देखते हुए भी क्या उसे योग-साधना में ले जाया जा सकता है?
प्रश्न पहला:
पतंजलि ने स्वयं में बद्धमूल होने के लिए अनासक्ति अर्थात इच्छाओं की समाप्ति के महत्व पर जोर दिया है। लेकिन अनासक्ति क्या वास्तव में यात्रा के आरंभ में होती है या यह बिलकुल अंत पर ही होती है?