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हो सकता है वह मृत्यु से भयभीत हो। जिन्हें मृत्यु का भय होता है वे लोग ज्यादा खाते हैं क्योंकि खाना जीवन का आधार दिखाई पड़ता है। तुम ज्यादा खाते हो, तो ज्यादा जीवंत तुम होते हो-यह गणित बैठा है तुम्हारे मन में, क्योंकि अगर तुम नहीं खाते, तो तुम मर जाते। न खाना मृत्यु के बराबर हो जाता है और ज्यादा खा लेना ज्यादा जीवन के तुल्य हो जाता है। इसलिए अगर तुम्हें मृत्यु- भय है तो तुम ज्यादा खाओगे। और अगर तुम्हें कोई प्रेम नहीं करता, तो तम ज्यादा खाओगे।
भोजन प्रेम की जगह एक परिपूरक बन सकता है, क्योंकि बच्चा शुरू में भोजन और प्रेम का संबंध जोड़ना सीखता है। पहली चीज, जिसके प्रति बच्चा सजग होने वाला है, वह है मां-मां के दवारा आया भोजन और मां के दवारा आया प्रेम। प्रेम और भोजन उसकी चेतना में साथ-साथ प्रवेश करते हैं। और जब भी मां प्रेमपूर्ण होती है, वह ज्यादा दूध दे देती है। स्तन प्रसन्नतापूर्वक दिया जाता है। लेकिन जब भी मां क्रोध में होती है, अप्रेमपूर्ण होती है, वह स्तन को तुरंत छीन लेती है। वह दूध नहीं देती।
भोजन दूर कर दिया जाता है जब-जब मां अप्रेमपूर्ण होती है। भोजन दिया जाता है जब वह प्रेमपूर्ण होती है। तो प्रेम और भोजन एक हो जाते हैं। मन में, बच्चे के मन में वे संबंधित हो जाते हैं। इसलिए जब कभी बच्चा ज्यादा प्रेम पाता है, वह अपने आहार को कम कर देगा क्योंकि बहुत ज्यादा प्रेम के साथ भोजन की जरूरत नहीं होती है। जब कभी प्रेम नहीं होता, वह ज्यादा खायेगा क्योंकि संतुलन बनाये रखना पड़ता है। और अगर प्रेम बिलकुल ही नहीं होता, तो वह अपना पेट पूरा भर लेगा।
तुम्हें यह जानकर शायद आश्चर्य हणो कि जिस समय व्यक्ति प्रेम में पड़ते हैं, वे मोटापा खो देते हैं। इसीलिए लड़कियों का जब विवाह हो जाता है उसी क्षण से वे मोटापा इकट्ठा करना शुरू कर देती हैं। जब प्रेम व्यवस्थित हो जाता है तो वे मोटी होना शुरू हो जाती है, क्योंकि अब कोई प्रेम वहां नहीं होता। अब प्रेम और प्रेम का संसार एक ढंग से खत्म ही है!
उन देशों में जहां तलाक ज्यादा प्रचलित हो चुका है, स्त्रियां कहीं बेहतर स्वपाकृति में दिखायी पड़ रही है। वह देश जहां तलाक ज्यादा प्रचलित नहीं है, औरतें अपनी देहाकृति के बारे में जरा भी फिक्र नहीं करतीं। अगर तलाक संभव हो तो स्त्रियों को नये प्रेमी खोजने पड़ेंगे इसलिए वे देहाकृति के प्रति सचेत हो जाती हैं। प्रेम की खोज शारीरिक आकृति को मदद देती है। लेकिन जब प्रेम व्यवस्थित हो जाता है, तो एक ढंग से वह खत्म हो जाता है। तब तुम्हें शरीर की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं रहती। तुम्हें कुछ ध्यान रखने की जरूरत नहीं। तो यह व्यक्ति-मैं जिसके बारे में बात कर रहा था शायद मृत्यु से भयभीत होगा। या शायद यह हो कि उसे किसी के साथ गहरा आंतरिक प्रेम न हो। और ये दोनों बातें फिर जुड़ी हुई हैं। अगर तुम प्रेम में पड़ जाते हो तो तुम्हें मृत्यु का भय नहीं रहता। प्रेम इतना तृप्तिदायी है कि तुम फिक्र नहीं करते कि भविष्य में क्या होने वाला है। प्रेम स्वयं एक परितृप्ति है। अगर मृत्यु भी आ जाती है, तो उसका भी स्वागत किया जा सकता है। लेकिन