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लेकिन वे तीस मिनट कभी बहुत काफी न होते। और जब तुम पहुंचते, तुम पा सकते थे कि वह बोलना स्थगित कर चुका था। अगले दिन यही बात फिर घटित होती ।
एक बार उसने लगातार सात दिन तक इसे रह होने दिया। पहले दिन चार सौ व्यक्ति आये थे, अंतिम दिन केवल चौदह ही। धीरे- धीरे वे हतोत्साहित हो गये थे। अंततः यह असंभव लगने लगा था कि वह बोलने वाला है। फिर अंतिम दिन, जब वहां केवल चौदह आदमी थे, उसने उनकी ओर देखा और बोला, 'अब लोगों की सही मात्रा बच रही है तुम सात दिन तक इंतजार कर सकते थे निराश हुए बिना, सो अब तुमने इसे अर्जित किया है। अब मैं बोलूंगा और केवल तुम चौदह इस प्रवचन - माला को सुन पाओगे। अब किसी दूसरे को सूचित नहीं किया जायेगा कि मैंने बोलना शुरू
कर दिया है।'
इस ढंग का कार्य भिन्न होता है और पतंजलि ने भी बड़े गोपनीय समूह के साथ कार्य किया था। इसलिए इसमें से कोई धर्म नहीं निकला है, कोई संस्था नहीं निकली। पतंजलि के कोई संप्रदाय नहीं है। वे इतनी बड़ी शक्ति थे, लेकिन वे एक छोटे समूह के भीतर ही निकटता बनाये रहे । और उन्होंने इसे ऐसे ढंग से कार्यान्वित किया कि सूत्रों की शुद्धता सुरक्षित रखी रहे वह शुद्धता अब तक सुरक्षित रखी हुई है।
पांचवां प्रश्न:
कृपया आप उस अज्ञात शक्ति का कार्य समझायेंगे जो मानवीय मन को संसारी चीजों और आदतों से जोड़े रखती है: यह जानते हुए कि अंतिम परिणाम दुख के अतिरिक्त और कुछ नहीं है?
हमारी यह जागरूकता समग्र नहीं है। यह जागरूकता तो बस बौद्धिक है। तर्कपूर्ण ढंग से तुम समझ लेते हो कि 'जो कुछ मैं कर रहा हूं वह मुझे दुख की ओर ले जा रहा है, लेकिन यह तुम्हारा अस्तित्वगत अनुभव नहीं होता है। तुम इसे केवल बौद्धिक तौर पर समझ लेते हो। यदि तुम बस तुम्हारी बुद्धि मात्र होते तो कहीं कोई समस्या न होती, लेकिन तुम अबुद्धि भी हो। यदि तुम्हारे पास केवल चेतन मन ही होता तो भी ठीक रहता, लेकिन तुम्हारे पास अचेतन मन भी है। चेतन मन जाता है कि तुम प्रतिदिन दुख में जा रहे हो अपनी ही चेष्टाओं के कारण कि तुम अपना नरक स्वयं निर्मित कर रहे हो। लेकिन अचेतन इसके प्रति जागरुक नहीं है और अचेतन तुम्हारे चेतन मन से नौ गुना बड़ा होता है। यह अपनी आदतों के साथ उटा रह जाता है।