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की आंखों पर आंखें गड़ाये हुए। तब अचानक मिशनरी ने एक चमत्कार देखा। सिंह ने अचानक अपने पंजे एक-दूसरे से जोड़ कर रख लिये और फिर बड़े प्रार्थनापूर्ण भाव में उन पर झुक आया-जैसे कि वह प्रार्थना कर रहा हो।
यह तो बहुत ज्यादा हुआ! मिशनरी भी इतने की तो अपेक्षा नहीं कर रहा था कि एक सिंह को प्रार्थना करनी शुरू कर देनी चाहिए। वह खुश हो गया। लेकिन फिर उसने सोचा,' अब क्या करना होगा? मुझे क्या करना चाहिए?' लेकिन इस वक्त तक सम्मोहित वह भी हो चुका था-केवल सिंह ही नहीं; इसलिए उसने सोचा सिंह का अनुसरण करना बेहतर है।
वह भी झुक गया और प्रार्थना करनी शुरू कर दी। पांच मिनट फिर और गुजर गये। फिर सिंह ने आंखें खोली और बोला, 'ओ आदमी, तुम क्या कर रहे हो? मैं प्रार्थना कर रहा हूं लेकिन तुम क्या कर रहे हो?' वह सिंह एक धार्मिक सिंह था, पवित्र,लेकिन केवल विचारों से ही! कर्म से वह एक सिंह था, और वह एक सिंह की भांति ही बरताव करने जा रहा था। वह एक आदमी को मारने जा रहा था, इसलिए वह कृत्य के पहले अहोभाव कह रहा था।
सारी मानव-घटना की यही स्थिति है, सारी मानवता की। तुम केवल विचारों में पवित्र हो। कर्म से आदमी पशु ही बना रहता है। और यही कुछ हमेशा होता रहेगा जब तक हम विचारों से चिपके रहना समाप्त नहीं करते और इसकी बजाय परिस्थितियों का निर्माण नहीं करते, जिनमें विचार बदलते हैं।
पतंजलि नहीं कहेंगे कि प्रेममय होना अच्छा है। वे तुम्हारी सहायता करेंगे उस परिस्थिति का निर्माण करने में, जिसमें कि प्रेम खिल सकता है। इसीलिए मैं कहता हूं वे वैज्ञानिक हैं। यदि तुम एक-एक कदम उनको समझते जाते हो, तो तुम अपने में बहुत से फूल खिलते अनुभव करोगे जो पहले कल्पनातीत थे, अकल्पनीय थे। तुम उनके स्वप्न भी न देख सकते थे। यदि तुम अपना भोजन बदलते हो, यदि तुम अपने शरीर की स्थितियां बदलते हो, यदि तुम अपने सोने की शैली बदलते हो, यदि तुम साधारण आदतें बदलते हो, तुम देखोगे कि एक नया व्यक्ति तुममें उदित हो रहा है। तब विभिन्न परिवर्तनों की संभावना होती है। एक परिवर्तन के बाद दूसरे परिवर्तन संभव हो जाते हैं। धीरे-धीरे अधिक संभावनाएं खुलने लगती हैं। इसलिए मैं कहता हूं पतंजलि तर्कयुक्त हैं। वे कोई तार्किक दार्शनिक नहीं है; वे तर्कयुक्त हैं, वे हैं प्रायोगिक व्यक्ति।
दूसरा प्रश्न: