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विपरीत भी सच है जब कभी तुम प्रसन्नता अनुभव करो, ध्यान रख लेना कि तुम किस तरह सांस ले रहे हो। फिर जब कभी तुम उदास होगे, उसी ढांचे को आजमाओ। तुरंत उदासी गायब हो जायेगी। क्योंकि मन शून्य में नहीं जी सकता। यह क्रमबद्धता में जीवित रहता है, और श्वासक्रिया मन के लिए गहनतम क्रमबद्धता
सांस विचार है। यदि तुम सांस लेना बंद करते हो, तत्काल ही विचार समाप्त हो जाते हैं। इसका एक पल के लिए परीक्षण करो, सांस लेना बंद करो सोचने की प्रक्रिया फौरन भंग हो जाती है वह प्रक्रिया टूट जाती है। विचार अदृश्य छोर है, दृश्य श्वसन प्रक्रिया का
यही है मेरा मतलब, जब मैं कहता हूं कि पतंजलि वैज्ञानिक हैं। वे कवि नहीं हैं। यदि वे कहते हैं, 'मांस मत खाओ,' तो वे इसलिए नहीं कह रहे हैं क्योंकि मांस खाना हिंसा है; नहीं। वे यह कह रहे है इसलिए कि मांस खाना स्व - विनाशक है। कवि हैं जो कहते हैं कि अहिंसात्मक होना सुंदर है। लेकिन पतंजलि कहते हैं कि अहिंसात्मक होना स्वस्थ होना है: अहिंसाअक होना स्वार्थी होना है। यानी • किसी दूसरे के लिए करुणा नहीं कर रहे, तुम स्वयं अपने लिए करुणा कर रहे हो।
तुम
पतंजलि केवल तुमसे संबंध रखते हैं और तुम्हारे रूपांतरण से और तुम परिवर्तन के बारे में सोचने भर से चीजों को परिवर्तित नहीं कर सकते हो। तुम्हें परिस्थिति का निर्माण करना होता है। वरना, संसार में सर्वत्र प्रेम सिखाया जाता रहा है, लेकिन प्रेम का अस्तित्व कहीं नहीं होता है क्योंकि परिस्थिति का ही अस्तित्व नहीं होता। तुम कैसे प्रेमपूर्ण हो सकते हो यदि तुम मांसाहारी होते हो? यदि तुम मांस खाते हो, तो हिंसा उसमें होती है और इतनी गहरी हिंसा के साथ प्रेमपूर्ण कैसे हो सकते हो? तुम्हारा प्रेम मात्र झूठा होगा या वह घृणा का एक स्वप्न भर होगा।
एक प्राचीन भारतीय कहानी है एक ईसाई मिशनरी किसी जंगल में से गुजर रहा था। वह प्रेम में विश्वास करता था, स्वभावतः इसलिए उसने बंदूक पास नहीं रखी हुई थी। अचानक उसने एक सिंह को पास आते हुए देखा, वह डर गया। वह सोचने लगा, अब तो प्रेम का सिद्धांत नहीं चलेगा। अक्लमंदी होती यदि पास में बंदूक रखता ।
लेकिन कुछ तो करना ही था, वह संकट में था। उसे याद था कि किसी ने कहीं कहा था कि यदि तुम दौड़ो, सिंह तुम्हारे पीछे चला आयेगा, और कुछ पलों के भीतर तुम पकड़ लिये जाओगे और मर जाओगे। लेकिन अगर तुम सिंह की आंखों में एक टक देखते जाते हो, तब कुछ संभावना होती है कि वह शायद प्रभाव में आ जाये, सम्मोहित हो जाये। हो सकता है वह अपना मन बदल ले। और ऐसी कहानियां है कि बहुत बार सिंहों ने अपने मन बदल लिये वे दूर हो पीछे हट गये।
इसलिए यह आजमाने लायक था। और भाग निकलने का प्रयत्न करने में तो कोई फायदा न था। वह मिशनरी टकटकी लगा कर देखने लगा। वह सिंह समीप आ गया। वह भी आंखें गड़ाये हुए देख रहा था मिशनरी की आंखों में ताकते हुए। पांच मिनट तक वे आमने-सामने खड़े रहे, एक दूसरे