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उदाहरण के तौर पर, मैंने तुमसे कहा कि सृष्टि में एक योजना है; कि सृष्टि में एक योजनाबद्ध स्वप्नरेखा है विश्व की एक व्यवस्था है, एक सुंदर व्यवस्था संपूर्ण सम्यक अनुमान यह होगा कि इसके पीछे किसी का हाथ जान पड़ता है। शायद हम प्रत्यक्ष स्वप्न से इसके प्रति जागरूक न हों, हो सकता है हम उस हाथ का सीधा एकर्श न पायें, लेकिन एक हाथ वहां जान पड़ता है, छिपा हुआ यह है सम्यक अनुमान ।
लेकिन उसी आधार से तुम गलत ढंग से भी अनुमान कर सकते हो। ऐसे विचारक हुए हैं जो कह चुके हैं। दिदरो ने कहा है कि सुव्यवस्था के कारण मैं विश्वास नहीं कर सकता कि ईश्वर है। विश्व में एक श्रेष्ठ व्यवस्था दिखाई पड़ती है, इसी व्यवस्था के कारण मैं ईश्वर में विश्वास नहीं कर सकता।' कैसा है उसका तर्क? वह कहता है कि यदि इसके पीछे कोई व्यक्ति था, तो इतनी अधिक व्यवस्था नहीं हो सकती थी। यदि इसके पीछे व्यक्ति था, तो उसने कई बार गलतियां की होतीं। कई बार वह मनमौजी हो जाता, पगला हो जाता। कई बार वह चीजें बदल देता नियम संपूर्ण नहीं हो सकते यदि कोई उनके पीछे होता है। नियम केवल तभी संपूर्ण हो सकते हैं जब उनके पीछे कोई नहीं होता और वे केवल यांत्रिक होते हैं 1
यह भी एक आकर्षक दृष्टि है। यदि हर चीज बिलकुल सही चलती रहती है, तो वह यांत्रिक लगती है। क्योंकि मनुष्य के बारे में कहा जाता है कि भूल करना मानवोचित है। यदि कोई व्यक्ति वहां है, तो कई बार उसे भूल करनी चाहिए। इतनी अधिक पूर्णता से ऊब जाएगा वह और कई बार वह चीजों को बदल देना चाहेगा। पानी सौ डिग्री पर उबलता है वह हजारों शताब्दियों से सौ डिग्री पर उबल रहा है; सदा-सदा से ईश्वर को तो ऊब जाना चाहिए। यदि कोई इस ब्रह्मांड के नियमों के पीछे है तो उसे ऊब जाना चाहिए, दिदरो कहता है। इसलिए केवल परिवर्तन के लिए ही एक दिन वह कहेगा, 'अब आगे से पानी नब्बे डिग्री पर उबलेगा।' लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ है, इसलिए कोई व्यक्ति वहां दिखाई नहीं पड़ता है।
दोनों तर्क एकदम सही लगते हैं, लेकिन पतंजलि कहते हैं कि सम्यक अनुमान वह है जो तुम्हें विकसित होने की संभावनाएं देता है। सवाल यह नहीं है कि तर्क बिलकुल पूर्ण है या नहीं। सवाल यह है कि तुम्हारा निष्कर्ष एक प्रारम्भ हो जाना चाहिए। यदि ईश्वर नहीं है, यह बात समाप्ति बन जाती है, तब तुम विकसित नहीं हो सकते। यदि तुम निष्पत्ति लेते हो कि कोई छिपा हुआ सहायक हाथ है, तब दुनिया एक रहस्य बन जाती है। तब तुम यहां मात्र संयोगवश नहीं हो। तब तुम्हारा जीवन अर्थपूर्ण बन जाता है तब तुम एक विशाल आयोजन का हिस्सा बन जाते हो। तब कोई बात संभव हो पाती है। तुम कुछ कर सकते हो। तुम जागरूकता में बढ़ सकते हो। सम्यक अनुमान का अर्थ है वह, जो तुम्हें विकास दे सके। और असम्यक अनुमान वह है जो कि चाहे कितना भी श्रेष्ठ लगे, तुम्हारे विकास को समाप्त कर देता है।