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अहिंसा को आधार शिला अपरिग्रह
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श्रहिंसा की पीठ पर महावीर ने लिख दिया — 'अपरिग्रह' । यह अहिंसा का बेक-बोन - मेरूदण्ड है । पर अहिसा धर्मियो ने इसे समझने का, पकडने का और जीवन में उतारने का कोई आग्रह नही रखा । अहिंसा या यो कहिए हिंसा न करने का आग्रह तो बहुत गहरा उतरा है-मीलो तक उतरता चला गया है, यहा तक कि हम अहिसावाले जैविक ( आरगेनिक) वस्तुओ के साथ कितनी कितनी हिंसाएँ जुडी है, इसका सूक्ष्म-सेसूक्ष्म विवेचन कर सकते हैं। अहिंसा धर्मी की खाद्य सामग्री मे जमीकद, पत्ताभाजी, अकुरित अन्न, कई तरह के फल, शहद आदि पदार्थ इसलिए वर्जित है कि किसी-न-किसी रूप मे इनके साथ हिसा का तत्त्व अधिक जुडा हुआ है । चलने और बोलने की सूक्ष्म हिंसाये भी हमने समझी हैं और उनसे बचने की मर्यादाएँ जीवन में दाखिल की है। 'आप जैन है, रात मे तो नही खाएँगे ? ” ——यह वाटरमार्क (जल - चिह्न) महावीर के भक्तों ने सहज ही प्राप्त कर लिया है। वाटरमार्क तो यह होना था कि वीतरागी
जीवन मे ?
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