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जिस जिस . जानता है- योगाभ्यासी समझता है कि यहाँ जा
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वाला, खडा होने वाला, बैठने वाला व्यक्ति विशेष कोई नही है यह जो हम कहते है - "मैं जाता हूँ", " मैं खडा होता हूँ", बैठता हूँ” आदि यह केवल कहने का एक तरीका है। सघाटी - भिक्षुओ के तीन चीवरो में से एक चीवर ।
पृ० ४० गो- घातक - पुराने समय मे गो-घात वा गो-घातक की उपमा एक साधारण उपमा यी ।
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पृ० ४१ चारो चैतसिक ध्यान – प्रथम-ध्यान, द्वितीय-ध्यान, तृतीय- ध्यान, तथा चतुर्थं ध्यान | देखो पृ० ४६ ।
ऋद्धियाँ - असाधारण शक्तियाँ। ऋद्धियो को असम्भव न मान कर, एक वैज्ञानिक की दृष्टि से उनका तजुर्वा करने मे तो विशेष हर्ज नही, लेकिन अन्धी श्रद्धा के साथ ऋद्धियो के पीछे हैरान होना सचमुच नादानी है । 'ऋद्धियाँ' सम्भव है ही, ऐसा व्यक्तिगत अनुभव से कहने वाले कितने हैं, यदि सम्भव हो भी तो भी उन की विशेष उपयोगिता क्या है ?
पृ० ४३ वेदनाओ में वेदनानुपश्थी - वेदना के तीन प्रकार है - ( १ ) सुखावेदना - अनुकूल अनुभूति, दुखा-वेदना प्रतिकूल अनूभूति, न सुखा न दुखा वेदना - ऐसी अनुभूति जिसके बारे मे यह कहा न जा सके कि यह अनूकूल वेदना है वा प्रतिकूल ।
चित्त---चित्त का मतलब है विज्ञान स्कन्ध |
भीतरी चित्त-अपने भीतर का चित्त ।
धर्मो - यहाँ धर्मो से मतलब है सजा-स्कन्ध और सस्कार-स्कन्ध से । सम्यक् स्मृति मे रूप, वेदना, सज्ञा, सस्कार तथा विज्ञान - यह पाँचो स्कन्ध ध्यान के विषय है ।
पृ० ४४ पाँच नीवरणो--- (१) कामच्छन्द, (२) व्यापाद, (३) स्त्यान मृद्ध, (४) ओद्धत्य - कौकृत्य ( ५ ) विचिकित्सा - यही पाँच नीवरण है।