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काम-वितर्क से रहित हो, बुरे विचारो से रहित हो प्रथम-ध्यान को प्राप्त कर विचरता है, जिसमे वितर्क और विचार है, जो एकान्त-वास से उत्पन्न होता है, जिसमे प्रीति और सुग्न रहते है।
भिक्षुओ, प्रथम-ध्यान मे पाँच वाते नहीं रहती है और पॉच रहती है । म ४३ भिक्षओ, जो भिक्ष प्रथम-ध्यान की अवस्था में होता है, उस की कामुकता विनप्ट रहती है, कोव विनष्ट रहता है, आलस्य विनप्ट रहता है। उद्धतपन
और पध्तावा विनष्ट रहता है। सशय विनप्ट रहता है। वितर्क रहता है, विचार रहता है, प्रीति रहती है, सुख रहता है और रहती है चित्त की एकाग्रता। ___ और फिर भिक्षुओ, भिक्षु वितर्क और विचारो के उपशमन से अन्दर की म. २७ प्रसन्नता और एकाग्रता स्पी द्वितीय-ध्यान को प्राप्त होता है, जिसमे न वितर्क होते है, न विचार, जो समाधि मे उत्पन्न होता है और जिसमे प्रीति तथा मुख रहते है।
और फिर भिक्षुओ, भिक्षु प्रीति से भी विरक्त हो उपेक्षावान् वन विचरता है। वह स्मृतिमान्, ज्ञानवान् होता है और शरीर से सुख का अनुभव करता है। वह तृतीय-ध्यान को प्राप्त करता है, जिसे पडित-जन 'उपेक्षावान्, स्मृतिवान्, मुसपूर्वक विहार करने वाला' कहते है।
ओर फिर भिक्षुओ, भिक्ष सुख और दुख-दोनो के प्रहाण से, सौमनस्य और दौर्मनस्य के पहले ही अस्त हुए रहने मे (उत्पन्न) चतुर्थ-ध्यान को प्राप्त करता है, जिसमे न दुख होता है, न सुख, और होती है (केवल) उपेक्षा तथा स्मृति की परिशुद्धि।
भिक्षुओ, भिक्षु प्रथम-ध्यान द्वितीय-ध्यान तृतीय-ध्यान तथा अ. ९ चतुर्थ-ध्यान को प्राप्त कर विचरता है। वह स्प, वेदना, सज्ञा, सम्कार, विज्ञान-सभी धर्मो को अनित्य समझता है, दुख समझता है, रोग समझताहै, फोटा समझता है, गल्य समझता है, पाप समझता है, पीडा ममझता है, पर समझता है, नष्ट होने वाला समझता है, शून्य समझता है,