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और सात साल तक भी एक जैसा प्रतीत होता है, लेकिन जिसे चित्त कहते है, मन कहते है, विज्ञान कहते है वह तो रात को और ही उत्पन्न होता है तथा निरोध होता है और दिन को और ही।
इम लिए भिक्षुओ, इसे अच्छी प्रकार समझ कर यथार्थ रूप से 'यूं समझना चाहिये कि यह जितना भी रूप है, जितनी भी वेदना है, जितनी भी सज्ञा है, जितने भी सस्कार है, जितना भी विज्ञान है चाहे भूतकाल का हो, चाहे वर्तमान का, चाहे भविष्यत् का, चाहे अपने अन्दर का हो, अथवा बाहर का, चाहे स्थूल हो अथवा सूक्ष्म, चाहे वुरा हो अथवा भला, चाहे दूर हो अथवा समीप-~~वह "न मेरा है, न वह मै हूँ, न वह मेरा आत्मा है।"
भिक्षुओ, यदि मुझे (लोग) ऐसा पूछे कि "तुम पहले समय मे थे कि दी. ९ नही थे ? तुम भविप्य मे होगे कि नहीं होगे? तुम अव हो कि नही हो ?" तो उनके ऐमा पूछने पर मै उनको यूं कहूँगा कि "मै पहले समय मे था, 'नही था' ऐसा नहीं है, मैं भविष्यत् मे होऊँगा 'नहीं होऊँगा' ऐसा नहीं है, मै अब हूँ, 'नही हूँ' ऐसा नहीं है।"
भिक्षुओ, जो कोई प्रतीत्य-समुत्पाद को समझता है, वह धर्म को समझता है। जो धर्म को समझता है, वह प्रतीत्य-समुत्पाद को समझता है। जैसे भिक्षुओ, गो से दूध, दूध से दही, दही से मक्खन, मक्खन से घी, घी से घीमण्डा होता है। जिस समय मे दूध होता है, उस समय न उसे दही कहते है, न मक्खन, न घी, न घी का मॉडा। जिस समय वह दही होता है, उम समय न उसे दूध कहते है, न मक्खन, न धी, न घी का मॉडा। इसी प्रकार भिक्षुओ, जिस समय मेरा भूत-काल का जन्म था, उस समय मेरा भूत-काल का जन्म ही सत्य था, यह वर्तमान और भविप्यत् का जन्म असत्य या। जव मेरा भविष्यत् काल का जन्म होगा, उस समय मेरा भविष्यत्-काल का जन्म ही सत्य होगा, यह वर्तमान और भूत-काल का जन्म असत्य होगा। यह जो अब मेरा वर्तमान मे जन्म है, सो इस समय मेरा यही जन्म सत्य है, भूत-काल का और भविष्यत् का जन्म असत्य है।