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- २६ - समुदय है, यह वेदना का अस्त होना है , यह सजा है, यह सज्ञा का समुदय है, यह सजा का अस्त होना है, यह सखार है, यह सखारो का समुदय है, यह सखारो का अस्त होना है तथा यह विज्ञान है, यह विज्ञान का समुदय है, यह विज्ञान का अस्त होना है। इस लिये कहता हूँ कि सभी मानताओ के, सभी अस्तित्वो के सभी अहङ्कारो के, सभी "मेरे" के, सभी अभिमानो के नाश से, विराग से, त्याग से, छूटने से, उपादान न रहने ।
से, तथागत विमुक्त हो गये है। अ.३।१३४ भिक्षुओ, चाहे तथागत उत्पन्न हो, चाहे उत्पन्न न हो, यह सदैव यूं ही
रहता है। सभी सस्कार अनित्य है, जैसे रूप अनित्य है, वेदना अनित्य है, सझा अनित्य है, सस्कार अनित्य है, विज्ञान अनित्य है।
भिक्षुओ, चाहे तयागत उत्पन्न हो, चाहे उत्पन्न न हो, यह सदैव यूं ही रहता है । सभी सस्कार दुख है, जैसे रूप दुख है, वेदना दुख है, सञ्जा दुख है, सस्कार दुख है, विज्ञान दुख है।।
भिक्षुओ, चाहे तथागत उत्पन्न हो, चाहे तथागत उत्पन्न न हो, यह सदैव यूँ ही रहता है । सभी धर्म अनात्म है, जैसे रूप अनात्म है, वेदना
अनात्म है, सना अनात्म है, सस्कार अनात्म है, विज्ञान अनात्म है। स. १६ भिक्षुओ, पण्डित जनो का कहना है कि रूप नित्य नही, ध्रुव नही,
शाश्वत नही, अपरिवर्तन-शील नही। मै भी कहता हूँ कि नही है। वेदनासज्ञा-सस्कार-विज्ञान, नित्य नही, ध्रुव नही, शाश्वत नही, अपरिवर्तनशील नही। मै भी कहता हूँ कि नही है। भिक्षुओ तथागत के इस प्रकार कहने, उपदेश करने, प्रकाशित करने, स्थापित करने, विस्तार करने, विभाजन करने और उघाड कर दिखा देने पर भी यदि कोई नही समझता है,
नही देखता है, तो मै ऐसे मूर्ख,पथगजन, अन्धे, जिसे आँख नही, जो समझता अ. १.१५ नही, जो देखता नहीको क्या करूँ ? यह बात भिक्षुओ, विल्कुल
असम्भव है, इसके लिए बिल्कुल गुजायश नही है कि कोई आँख वाला आदमी किसी भी धर्म को आत्मा करके ग्रहण करे।