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सामने हो, लेकिन उनका सयोग न हो, तो भी उससे उत्पन्न हो सकने वाले विज्ञान का प्रादुर्भाव नही होता ।
भिक्षुओ । जव अपनी आँख ठीक हो, बाहर की वस्तुएं (= रूप ) सामने हो, और हो उनका सयोग, तभी उनसे उत्पन्न हो सकने वाले विज्ञान का प्रादुर्भाव होता है ।
इम लिए विज्ञान हेतु ( = प्रत्यय) से पैदा होता है, बिना हेतु के विज्ञान की उत्पत्ति नही ।
आँख ओर रूप से जिस विज्ञान की उत्पत्ति होती है, वह चक्षु-विज्ञान कहलाता है । कान और शब्द से जिस विज्ञान की उत्पत्ति होती है, वह श्रोतविज्ञान कहलाता है । नाक और गन्ध से जिस विज्ञान की उत्पत्ति होती है वह घ्राण - विज्ञान कहलाता है । काय ( = स्पर्शेन्द्रिय) और स्पृशतव्य से जिस विज्ञान की उत्पत्ति होती है, वह काय-विज्ञान कहलाता है । मन तथा धर्म (= मन - इन्द्रिय के विपय) से जिस विज्ञान की उत्पत्ति होती है, वह मनोविज्ञान कहलाता है ।
उस विज्ञान मे का जो रूप है, वह रूप उपादान स्कन्ध के अन्तर्गत है, म २८ उस विज्ञान मे की जो वेदना है, वह वेदना - उपादान - स्कन्ध के अन्तर्गत है, उस विज्ञान मे की जो सज्ञा है, वह सज्ञा-उपादान स्कन्ध के अन्तर्गत है, उस विज्ञान मे के जो सस्कार है, वह सस्कार - उपादान स्कन्ध के अन्तर्गत है, जो उस विज्ञान ( = चित्त ) मे का विज्ञान ( - मात्र ) है, वह विज्ञानउपादान स्कन्ध के अन्तर्गत है ।
भिक्षुओ । यदि कोई कहे कि विना रूप के, विना वेदना के, विना सजा के, विना सस्कार के, विज्ञान = चित्तमन की उत्पत्ति, स्थिति, विनाग, उत्पन्न होना, वृद्धि तथा विपुलता को प्राप्त होना हो सकता है, तो यह असम्भव है ।
भिक्षुओ । सभी सस्कार अनित्य है, सभी सस्कार दुख है, सभी धर्म स २१२ अनात्म है । ( क्योकि ) रूप अनित्य है, वेदना अनित्य है, सज्ञा अनित्य है,