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॥ भुजंगप्रयात वृत्तम् ॥ विधे जे कर्यों आतमा उज्जवाले,
घणाकाल नो कर्म राशि प्रजाले । अनेका सुलद्धि लहे यत्प्रभावे,
क्षमा युक्त ए साधु महानन्द पावे ॥१॥ वली बाध अभ्यंतरे भेद भिन्न,
जिनेन्द्रागमे वर्णव्यु जे अछिन्न । अनासं स्वभावे तिलोके सुनद्य,
नमूते प्रमोदे तपः पद मनिंद्य ॥२॥
॥ मालिनी वृत्तम् ॥ इति जिनवर बंद्य भक्तिता ये स्तुवंति।
परम पद निधान, मानसे संस्मरंति ॥ पर भव इहवा श्रीपालवन्मानवानां,
प्रभवति किलतेषां चारु कल्याण लक्ष्मी ॥३॥
॥ भुजङ्गप्रयातवृत्तम् ॥ त्रिकालिक पणे कर्म कषाय टाले,
निकाचित पणे बांधियांतेह बाले। कह यु तेह तप वाह्य अन्तर दुभेदे,
क्षमा युक्त निर्हेतु दुर्ध्यान छेदे ॥४॥