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________________ [ ६३ ] ॥ कान्यम् ॥ विमल केवल भासन भास्करं, जगतिजंतु महोदय कारणम् । जिननरं महमान जलौघतः, शुचिमनाः स्त्रपयामि विशुद्धये ॥८ मन्त्र — ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये, जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय, श्रीचा निपदे, पचामृतचन्दनं पुप्प धूपं दीप अक्षतान् नैवेद्य-फलं वस्त्रं वास - यजामहे स्वाहा । ॥ अथ नवमी श्री तप पद पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ कर्म काष्ठ प्रति जालना, परतिख अगनि समान । तप पद पूजो भवि सदा, निर्मल धरिये ध्मान ॥ १ ॥ ॥ काव्यम् इन्द्रवजावृत्तम् ॥ कम्ममोन्मूलण कु जरस्म, नमो नमो तिन्न वनोयरस्स । अणेगलद्वीण निघणस्म, दुमज्ज अत्याणय साहणस्स ||१|| || मालिनीवृत्तम् ॥ - - " इय नव पय शिद्ध, लद्धि विन्ना समिद्ध । पपडिय सरसग्ग, हाँ विरेदास मग्ग || विसारं, सोणि पीडा वया । विजय विजय चक्र, सिद्धचक्क नमामि ||१||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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