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[ १] सुमत्ती गुपत्ती घरे सावधाना,
शुभाचार पाले हरे मोह माना ॥१॥ विजे विकत्या प्रमादादि दोपा,
जितेन्द्रियपणे जे महाबान कोशा । शुम ध्यान ध्यावे गणौधे समिद्धा,
__ नमो ते सदा सर्व साधु प्रसिद्धा ॥२॥ करे सेवना रिवायग गणीनी,
करूँ वर्णना तेहनीशी मुणिनी । समेता सदा पच समिते त्रिगुप्ता,
त्रिगुप्ते नहीं काम भोगेपुलिप्ता ॥३॥ क्ली बाह्य अभ्यन्तर प्रथिटाली,
होये मुक्तिने योग्य चारित्र पाली । शुमाष्टाग योगे रमे चित्तवाली,
नमु साधुने तेह निज पाप टाली ॥४॥
॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥ सकल विषय विप वारिने, नि:कामी निःसगीजी। भव दव ताप समावता, आतम साधन रगी जी ॥१॥