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॥ काव्यम् ॥ चिमल केवल भासन भास्कर, जगतिजन्तु महोदय कारणम् । जिनवरं बहुमान जलौषतः,शुचि मनाः स्नपयामि विशुद्धये।।२
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं अहं परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये, जन्म- जरा - मृत्यु - निवारणाय, श्रीउपाध्यायपदे, पंचामृत - चन्दनं - पुष्पं-धूप-दीपं-अक्षतान्-नैवेद्य-फलं-वस्त्रंवासं यजामहे स्वाहा। ॥ अथ पंचमी श्री मुनि पद पूजा ॥
॥दोहा॥ मोक्ष मारग साधन भणी, सावधान थया जेह । ते मुनिवर पद बंदता, निर्मलथाये देह ॥१॥
| काव्यम् ॥ इन्द्रवज्रावृत्तम् ।। साहूण संसाहिअ संजमाणं, नमो नमो सुद्ध दया दमाणं । तिगुत्ति गुत्ताण समाहियाणं, मुणीण माणंद पयट्टियाणं ।।
॥ भुजंग प्रयात वृत्तम् ॥ जिके दर्शन ज्ञान चारित्र रत्ने,
करी मोक्ष साधे प्रधान प्रयत्ने ।