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॥ ढाल श्रीपालना रासनी देशी ॥ समय पएसंतर अणकरसी, चरम विभाग विशेष । अवगाहन लही जे शिव पहोता, सिद्ध नमो ते अशेष रे।
॥ भविका० १॥ पूर्व प्रयोग ने गति परिणामे, बंधन छेद असंग । समय एक ऊरथ गति जेहनी, ते सिध प्रणमो रंग रे ।
॥ भविका० २॥ निर्मल सिद्धशिलानी उपरे, जोयण एक लोकंत । सादि अनंत तिहाँथिति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो संतरे ।
॥ भविका० ३॥ जाणे पिण न शके कही पुरगुण, प्राकृत तिम गुण जास । ओपमा विण नाणी भव मांहे, ते सिद्ध दियो उल्लास रे ।
॥भविका०४॥ ज्योतिसुज्योति मली जस अनुपम, विरमी सकल उपाधि । पातमराम रमापति समरो, ते सिद्ध सहज समाधि रे।
॥ भविका० ५॥