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[२६] जन्म-जरा - मृत्यु - निवारणाय, श्रीमज्जिनेन्द्राय, दीपं यजामहे स्वाहा। ___ उपरोक्त काव्य तथा मंत्र पढ़कर, प्रभु प्रतिमाजी के सन्मुस दीपक फानस वाला दिखा।
॥ पष्ठी अक्षत पूजा ६॥ ॐ नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्याय, सर्वसाधुभ्यः सकल मंगल केलि निकेतनं, परम मंगलभावमयं जिनम् । __ यति भन्यजना इति दर्शयन्, दधतिनाथ पुरोक्षत स्वस्तिकम् ॥६॥
ॐ हीं अर्ह परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये, जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय, श्री मन्जिनेन्द्राय, अक्षतान् यजामहे स्वाहा।
उपरोक्त कान्य और मन्त्र पढ़कर, प्रभु के आगे पाटे के ऊपर अक्षतों का स्वस्तिक बनाकर-सिद्धशिला तथा तीन पुंज भी करे।
॥ सप्तमी नैवैद्य पूजा ७॥ ॥ ॐ नमोऽर्हसि द्वाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः ।। सकल पुद्गल सग विनर्जनं, सहज चेतन भाव विलासरम् । सरसभोजन नन्यनिवेदनात्, परम नितिभावमहस्पृहे ग७॥