________________ 482 - वृहत् पूजा संग्रह तेरह संवत में, काती पुनम लय लायो रे // धन० // 5 // सद्गुरु प्रस्थापित विद्यालय, विद्यारथि समुदायो / कर्म निवारक प्रभु गुण पूजा, पारस रस वरसायो रे // धन० / 6 // आतम भाव प्रधान निरूपण, सहज समाधि उपायो। कर्म आठ धन काठ जला कर, आठ परम गुण पायोरे / धन० // 7 // पाठक दिव्य कवीन्द्र निजातम, बोध बुद्धि हित गायो। परमातम पद पूजा गाते, अजर अमर पद पायो रे // धन० // 8 //