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[ २२ ] पउस दह आदि दह, गंग पमुहा नई। तीर्थ जल अमल लेवा भणी ते गई ॥१॥ जाति अड़ कलश करि, सहस अट्ठोत्तरा। छत्र चामर सिंहासने, शुभतरा ॥ उपगरण पुष्फ चंगेरी, पमुहा सवे । आगमे भाखिया, तेम आणी ठवे ॥२॥ तीर्थ जल भरिय करी, कलश करी देवता । गावता भावता, धर्म उन्नति रता ॥ तिरिय नर अमरने, हर्ष उपजावता । धन्य अम्ह शक्ति शुचि, भक्ति इस मावता ॥३॥ समकित वीज निज, आत्म आरोपता। कलश पाणी मिसे, भक्ति जल सींचता ॥ मेरु सिहरोवरि, सर्व आव्या वही । शक्र उत्संग जिन, देखि मन गहगही ॥४॥
॥ गाथा वस्तुछन्द ॥ हहो देवा-हंहो देवा, अणाई कालो, अदिट्ठपुग्यो । तिलोय तारणो, तिलोय बंधू, मिच्छत्त मोहविद्ध सणो ॥ अणाई तिहा विणासणो, देवाहिदेवो, दिब्यो, हिअय
कामेहि ॥७॥