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जय जयो तू जिनराज जगगुरु, एम दे आशीष ए । अम्ह प्राण शरण आधार जीवन, एक तू जगदीश ए ॥४॥
|| ढाल ||
सुर गिरिवर जी, पाँडुक वन में गिरि शिल पर जी, सिंहासन तिहाँ आणी जी, शक्रे जिन सोले ग्रथा । घउस े जी, तिहाँ सुरपति आवी रह्या ॥ ५॥
चिह्न दिशे । सासय वसे ||
॥ हरिगीत [ त्रोटक ] छन्द ॥ आविया सुरपति सर्व भगते, कलश श्रेणी वणावए । सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ औषधि, सर्व वस्तु अणावए || अच्चय पति तिहाँ हुकम कीनो, देव कोडा कोड़ी ने । जिन मज्जनारथ नीर लावो, ससुर कर जोडी ने | ५||
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यहाँ पर हाथ में जल-कलश लेकर सड़ा रहे ।
॥ ढाल ६ ॥
[ तर्ज - शान्ति ने कारणे इन्द्र कलशा भरे ] रसी, देवकोडी
हसी ।
आत्मसाधन
उल्लसी ने धसी, क्षीर सागर दिसी ||